मजदूर

गरीब नहीं मजदूर का मतलब,
सफलता के रीढ़ हैं ये।
ईट -सीमेंट में लिपे -पुते कभी,
कभी ऑफिस की फाइल के भीड़ हैं ये।

श्रमिक को गरीब समझना,
बड़ी यह भूल हमारी है।
नव-निर्माण के स्रोत हैं ये,
इन पर तो जग बलिहारी है।

इन श्रमिकों को मान दिलाने,
श्रमिक दिवस तो मनता है
पर क्या इक दिन के मान से,
इनका जीवन चलता है?

इनमें भी है भरी भावना,
दुख-सुख विचलित करते हैं।
हर दिन इनका मन करें तो
दिवस सफल ये बनते हैं।

मई एक उन्नीस सौ छियासी,
अमेरिका ऐलान किया ।
घंटे आठ वो काम करेंगे,
उनका था सम्मान किया।

विद्यालय भी केंद्र बने तो,
बच्चे भी संवेदनाएं व्यक्त करें।
ऊंच -नीच का भेद मिटे व,
भावों को अभिव्यक्त करें।

प्रति मजदूर को मिले संरक्षण,
हर जन जब सम्मान करे।
मजदूर दिवस तब सफल हो सके ,
जब जन -जन में नव प्राण भरे।

ये भारत मां की वो संतति हैं,
जिन पर आश्रित हैं माता।
इनके लहू -पसीने से ही,
मां का भाग्य चमक जाता।

साधना शाही ,वाराणसी

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By Sadhana Shahi

A teacher by profession and a hindi poet by heart! Passionate about teaching and expressing through pen and words.

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