आज हम अपने शुभचिंतकों का इंतजार करते हैं,
कब आओगे यार इसी से शुरू बात अपनी हर बार करते हैं।
कभी बीते लम्हों को याद कर खिलखिला लेते हैं,
तो कभी बात -बात पर आज भी हम तकरार करते हैं।
जिस दिन तकरार ना हो उस दिन मन नहीं लगता ,
क्योंकि, वो भी जानते हैं कि हम एक दूसरे से कितना प्यार करते हैं।
कुछ उनकी सुन लेते हैं ,और कुछ अपनी सुना लेते हैं ,
कैसे हो यार ?बस यही प्रश्न हम दिन में दो-चार बार करते हैं।
वह चूजें जिनके चहकने से यह घर गुलज़ार होता था,
शाम ढलते ही उनके चींचीं का इंतजार करते हैं।
जब अमृत रस घोले कलरव की धुन कानों में पड़ती है,
तब उस ध्वनि के सहारे ही अपने वीरान जीवन को गुलज़ार करते हैं।
आज पतझड़ है कल मधुमास भी आएगा,
उस मधुमास के आने का हम एतबार करते हैं।
जो अपने होकर भी अपने ना रहे उनकी फिक्र तू ना कर गालिब,
जो अपने ना होकर भी अपनों से बढ़कर हैं,
हम उन बेगानों को बेपनाह प्यार करते हैं।
साधना शाही, वाराणसी
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