बड़े ही हर्ष का विषय है कि हम अपने देश का स्वर्णिम स्वतंत्रता दिवस अमृत महोत्सव के रूप में मना रहे हैं। किंतु यह धातव्य है कि हमें स्वतंत्र दिवस मनाने का शुभ अवसर जिसकी वज़ह से मिला हमें उन्हें कभी भी भूलना नहीं चाहिए ।तो आज की मेरी कविता स्वतंत्रा के अग्रदूतों को समर्पित जिनकी वज़ह से हम आजाद भारत में सांस ले रहे हैं-
मील के पत्थर
आज से 75 वर्ष पूर्व हमने आज़ादी पाई थी ,
एकजुट हो मुंहतोड़ जवाब दिए तभी अनेकता में एकता जीत पाई थी।
आज तिरंगा अपने भाग्य पर इतना जो इतरा रहा है,
क्योंकि वह देश के गौरव के वास्ते नील गगन में फहरा रहा है।
यह मात्र तीन रंग नहीं देश की आन, बान ,शान है ,
यह वो रंग है जिससे मां भारती की पहचान है।
अरे जनाब! इसे तनकर नहीं अदब से झुक कर सलाम करिए,
बड़े ही त्याग , तपस्या बलिदानों से यह फहरा है,
आप भी अपनी ज़िंदगी में हासिल ऐसा मुकाम करिए।
हिंदू ,मुस्लिम, सिख, ईसाई में बंटकर कभी ना हो खंडित।
अनेक होकर भी हम एक हों तभी विश्व में होंगे महिमा मंडित।
तिरंगा कैसे प्रांत विशेष में नहीं पूरे आसमान में लहरा रहा है,
इस तरह मूक होकर एकता की राह हमें दिखा रहा है।
देश के सम्मान हेतु चलिए अपनी हिम्मत, ताकत और शौर्य को संजोएं,
हम संप्रभु हो ,राज्य हो संप्रभु हर भारतवासी का अंतर्मन मुस्काए।
याद रखना!
वफ़ा करने वालों से हम मित्रता का राह लेंगे ,
यदि भूल से किए ज़फा तो हम तुम्हारा आत्मदाह लेंगे।
आज़ादी हम फूलों पर नहीं शूलों पर चल कर पाए हैं,
तभी तो हमारे राष्ट्र नायक मील का पत्थर कहलाए हैं।
साधना शाही ,वाराणसी