सृष्टि कर्ता के सृजन में ,
मानव सबसे महान।
ऐसा कोई विषय नहीं है,
जिसका नहीं इसे ज्ञान।
अन्य जीव विचार न सकते,
यह करता है चिंतन।
ईश्वर की अद्भुत रचना का,
जीव नहीं यह निम्नतम।
विद्या ,बुद्धि, प्रेम मानव में है समाया,
अद्भुत, श्रेष्ठ त्रिकोण यह ईश्वर ने है बनाया।
राग, द्वेष ,अहिंसा भी भरा है,
ईश्वर ने दोनों ही बनाया।।
स्व विवेक से शूल वरो तुम ,
या फूल से जग महाकाओ।
श्रेष्ठ तत्वों को तुम अपना लो,,
मानव जीवन को सफल बनाओ।
स्व को स्वावलंबी तुम कर लो,
दूजे का ना लो आलंब,
कर्मवीर सा कर्म करो तुम,
ना खाली तुम भर लो दंभ।
स्वावलंबन का पाठ पढ़ो तम,
पढ़ो पूरा ना एकाध पढ़ो तुम।
अंत:स्थल में विश्वास यदि है,
दिखलाओ सब संभव कर तुम।
ना कोई कर सकता है निरादर,
ऊंच-नीच का ना कोई चादर।
स्वावलंबन का जीवन जिएं,
दूसरों का आसरा छोड़कर।
घृणा का ना कभी पात्र बनो तुम,
प्रेम का एक सौ आठ पढ़ो तुम।
निकम्मे का ना कोई सहारा,
अतः, स्वावलंबन के साथ चलो तुम।
जीवन धन्य उसी का जानो ,
स्वावलंबन को जो अपना ले।
जीवन का यह मूल मंत्र है,
अपना करके जग में छाले।
जो मानव कहे ढकोसला इसको,
नाते सारे तजते उसको।
अल्पज्ञता का परिचय देता,
स्पर्श ना करते सत्कर्म उसको।
स्वावलंबी विरोधी जो होते हैं,
आवृत्त वो होते हैं कुंठा से।
इन जैसों के तर्क निराले,
कर इन्हें दंडवत सदा विदा लें।
साधना शाही, वाराणसी