हिटलर, खौफ का पर्याय ऐसे मरा!

लोकतंत्र हो सबल,
तानाशाह निर्बल हो।
नेस्तनाबूत कर सकें इन्हें तो,
भाग्य सभी का उज्जवल हो।

एक दौर था इनका चला,
धरा थी इनकी नर्तकी बनी।
अनैतिक कार्य करके ये,
थे मानते खुद को सबसे धनी।

20 वीं सदी का पूर्वार्ध था,
हिटलर ऑस्ट्रिया में जाया।
साम्यवादी व यहूदी से घृणा का,
दौर था यह फिर पनपाया।

विश्व युद्ध का प्रथम चरण था,
एडोल्फ सेना में आया था।
कई लड़ाई लड़ा था उसने,
जर्मनी पराजय स्वीकार न पाया था।

नाजी नेता था चाल चला,
वक्तव्यों पर सब रीझ गए।
1922 के आते-आते,
जनसैलाब सभी थे मीत भए।

जर्मन सरकार गिराने को,
वीभत्स चाल वो चलने लगा।
पर सफल नहीं हो पाया ,
था देशद्रोह का दोष लगा।

थी 5 वर्ष की सजा मिली,
तदुपरांत वह रिहा हुआ।
जर्मन अति बदहाली में था,
इसका था उसको नफा हुआ।

चांसलर अब था वह जर्मनी का,
था दमन चक्र प्रारंभ किया।
साम्यवाद को नश्वर कर,
शुरू यहूदी नरसंहार हुआ।

द्वितीय विश्वयुद्ध था भड़क उठा,
साठ लाख बेगुनाहों का हिटलर हत्यारा था।
जब खुद की मौत सामने खड़ी,
वह उसको झेल न पाया था।

तीस अप्रैल उन्नीस सौ पैंतालीस,
सोवियत सेना ने घेर लिया।
कहीं ना मैं पकड़ा जाऊं,
यह डर था उसको फेर दिया।

ईवा ब्राउन से था व्याह किया,
यह व्याह भी मातम जैसा था ,
आत्महत्या की विधि था खोज रहा,
मुसोलिनी ना रहा का खबर गम जैसा था।

सायनाइड पत्नी व कुत्तों को दिया,
फिर खुद उसका था स्वाद चखा ।
इस पर भी जब ना चैन मिला,
फिर गोली को भी साथ रखा।

हिटलर जो अति हत्यारा था
वह स्वयं की हत्या कर डाला,
जो बिल्ली व ब्लेड से डरता था,
सायनाइड गोली खाकर चला।

साधना शाही, वाराणसी

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By Sadhana Shahi

A teacher by profession and a hindi poet by heart! Passionate about teaching and expressing through pen and words.

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