खुशी कहीं मिल जाए

उच्च लक्ष्य मानव जीवन का,
खुशी कहीं मिल जाए ।

जीवन सफल तब हो जाएगा,
अंतर्मन मुस्काए।

तालाश खुशी की है हर नर को,
पर वह है ना पाता।

मृग कस्तूरी को ज्यूं ढूंढ़े ,
वैसे ही अकुलाता ।

कांट- कूश में खुशी को खोजे,
रहती वो अंतर्मन में ।

मूढ़ चित्त यह समझ ना पाए,
खुशी मिले ना उसे जनम में।

ब्रह्मा जी ने सृष्टि सृजन किया,
खुशी को दिए छिपाय।

अनवरत मानव ढूंढ रहा है,
अब तक ना वह पाय।

धरती पर बह जंह -तह ढूंढे,
ढूंढे और अकुलाए।

सब्र का बांध है टूटता जाता,
घबराहट बढ़ती जाए।

ख़ुशी छुपी है अंतर्मन में ,
खोज रहा वन -वन में।

मानव मन कभी समझ न पाया,
वह है हर जन – जन में।

अंतर्मन को जिसने टटोला,
उसने खुशी को पाया।

धरा स्वर्ग -सा लगे है उसको,
आदि – व्याधि को गंवाया।

साधना शाही, वाराणसी

By Sadhana Shahi

A teacher by profession and a hindi poet by heart! Passionate about teaching and expressing through pen and words.

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