इस साल गंगा दशहरा 9 जून2022 गुरुवार को मनाया जा रहा है। जेष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की दशमी को गंगा दशहरा का पर्व मनाया जाता है । ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को सोमवार तथा हस्त नक्षत्र होने पर यह तिथि घोर पापों को भी नष्ट करने वाली मानी जाती है। हस्त नक्षत्र में बुधवार के दिन नदियों में श्रेष्ठ गंगा भागीरथ द्वारा स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतीर्ण हुई थीं। इसीलिए यह तिथि अत्यधिक महत्वपूर्ण है ।इस तिथि के दिन स्नान -दान, तर्पण से
10 मनोविकारों का समूल नाश होता है।ये दस मनोविकार हैं-क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी. गंगा जी के द्वारा10 पापों का हरण करने के कारण ही इस पर्व का नाम गंगा दशहरा पड़ा हिंदू धर्म में गंगा दशहरा का पर्व बड़ी उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है ।
इस दिन गंगा के जल में स्नान करके दूध, बताशे, जल, रोली, नारियल, धूप आदि से पूजन करके दान देना चाहिए इससे सभी प्रकार के पापों का नाश होता है और घर में धन-धान्य, सुख शांति की वृद्धि होती है।
गंगा दशहरा से जुड़ी एक कथा प्रचलित है-
केशनि तथा सुमति के पुत्रों का पैदा होना तथा सुमति के साठ हजार पुत्रों का जलकर भस्म होना
प्राचीन काल में अयोध्या में सगर नाम के राजा राज्य करते थे ।उनके कशिनी तथा सुमति नामक दो रानियां थीं केशिनी से अंशुमान नामक पुत्र हुआ तथा सुमति से 60000 पुत्र थे ।एक बार राजा ने अश्वमेध यज्ञ किया यज्ञ की पूर्ति के लिए एक अश्व छोड़ा यज्ञ भंग करने हेतु अश्वको चुराकर इंद्र ने कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया।
राजा ने यज्ञ के अश्व को खोजने के लिए अपने साठ हजार पुत्रों को भेजा ।अश्व को खोजते-खोजते वे कपिल मुनि के आश्रम में पहुंचे तो उन्होंने देखा यज्ञ के अश्व को वहां बांधा गया है ।उस समय कपिल मुनि तपस्या में लीन के राजा के पुत्रों ने कपिल मुनि को चोर- चोर कहकर पुकारना शुरू कर दिया। कपिल मुनि की समाधि टूट गई उनके नेत्रों से क्रोधाग्नि निकली जिससे राजा सगर के साठ हजार पुत्र जल कर भस्म हो गए।
अंशुमान द्वारा अपने भाइयों की खोज तथा महात्मा गरुण द्वारा भाइयों के मुक्ति का उपाय
केशिनी का पुत्र अंशुमान पिता सगर की आज्ञा पाकर अपने भाइयों को खोजता हुआ जब कपिल मुनि के आश्रम में पहुंचा। तब महात्मा गरूड़ ने उसके भाइयों के भस्म होने का सारा वृतांत उसे कह सुनाया । उन्होने अंशुमान को यह भी बताया कि यदि अपने भाइयों की मुक्ति चाहते हो तो गंगा जी को स्वर्ग से धरती पर लाना होगा । किंतु इस समय अश्व को ले जाकर अपने पिता के यज्ञ को पूर्ण कराओ। इसके बाद गंगा को पृथ्वी पर लाने का कार्य संपन्न करना ।अंशुमान ने अश्व सहित यज्ञ मंडप में पहुंचकर राजा सगर से सब वृत्तांत कह सुनाया।
महाराज सगर की मृत्यु तथा अंशुमान के पुत्र दिलीप की तपस्या का असफल होना
महाराज सगर के मृत्यु के पश्चात अंशुमान ने गंगाजी को पृथ्वी पर लाने के लिए तप किया किंतु वे असफल रहे। इसके बाद उनके पुत्र दिलीप ने भी तपस्या की परंतु वे भी असफल रहे।
दिलीप के पुत्र भागीरथ द्वारा गंगा जी को पृथ्वी पर लाने के लिए गोकर्ण तीर्थ में तपस्या करना
अंशुमान और उनके पुत्र दिलीप दोनों के असफल हो जाने के पश्चात दिलीप के पुत्र भागीरथ ने गंगा जी को पृथ्वी पर लाने के लिए गोकर्ण तीर्थ में जाकर कठोर तपस्या की तपस्या करते-करते कई वर्ष बीत गए तब ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए तथा गंगाजी को पृथ्वी लोक पर ले जाने का उन्होंने वरदान दिया ।
किंतु अब समस्या यह थी कि ब्रह्मा जी के कमंडल से छूटने के बाद गंगा के वेग को पृथ्वी पर भला संभालेगा कौन ?ब्रह्मा जी ने बताया कि भूलोक में भगवान शंकर के अतिरिक्त किसी में भी यह शक्ति नहीं है जो गंगा के वेग को संभाल सके। इसलिए यही उचित है कि गंगा के वेग को संभालने के लिए भगवान शंकर से अनुग्रह किया जाए।
राजा भगीरथ द्वारा एक अंगूठे पर खड़े होकर भगवान शंकर की आराधना करना
गंगा को धरती पर लाने का उपाय ब्रह्मा जी के मुखारविंदु उसे सुनने के पश्चात राजा भगीरथ एक अंगूठी पर खड़े होकर भगवान शंकर की आराधना करने लगे। उनके कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी गंगा कोअपनी जटाओं में संभालने के लिए तैयार हो गए ।गंगाजी जब देव लोक से पृथ्वी की ओर बढ़ीं, तो शिवजी ने गंगा जी की धारा को अपनी जटाओं में समेट लिया। कई वर्षों तक गंगा जी को जटाओं से बाहर निकलने का पथ न मिल सका।
राजा भगीरथ के अनुनय- विनय पर शिव जी द्वारा मां गंगा को मुक्त करना
भागीरथ के पुनः अनुनय विनय करने पर शिवजी गंगा मां को अपनी जटाओं से मुक्त करने के लिए तैयार हुए। इस प्रकार शिव की जटाओं से छूटकर गंगा जी हिमालय की घाटियों में कल-कल निनाद करके मैदान की ओर बढ़ीं। जिस रास्ते में वह जा रही थी उसी मार्ग में ऋषि जह्नू का आश्रम था। तपस्या में विघ्न समझ कर वे गंगा जी को पी गए ।
भगीरथ के प्रार्थना करने पर ऋषि जह्नू द्वारा गंगा जी को जांघ से निकाला जाना
गंगा को पुनः जांघ से निकाल दिया तभी से गंगा जह्नुपुत्री या जाह्नवी कहलाईं
माता जाह्नवी द्वारा सगर के साठ हजार पुत्रों को तारना
इस प्रकार अनेक स्थलों को पार करते हुए जाह्नवी ने कपिल मुनि के आश्रम में पहुंचकर सगर के साठ हजार पुत्रों के भस्म अवशेषों को तार कर मुक्त किया।
ब्रह्माजी द्वारा सगर के साठ हजार पुत्रों को अमर होने का वरदान मिलना
उसी समय ब्रह्मा जी ने प्रकट होकर भागीरथ के कठिन तप से प्रसन्न होकर सगर के साठ हजार पुत्रों के अमर होने का वर दिया। तथा घोषित किया कि तुम्हारे नाम पर गंगा जी का नाम भागीरथी होगा अब तुम जाकर अयोध्या का राज-काज संभालो ।ऐसा कहकर ब्रह्मा जी वहां से अंतर्ध्यान हो गए।
जीवनदायिनी तथा मुक्ति दायिनी मां गंगा
माता गंगा प्राणी मात्र को जीवनदान ही नहीं देती वरन मुक्ति भी देती हैं। मां पापों का शमन करती हैं। इसी कारण मां गंगा की महिमा का गुणगान सर्वत्र गाया जाता है।
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