गतिशील

सोया नर होता कलयुग में,
बैठा द्वापर होता।

खड़ा हुआ तो त्रेता युग में,
चले तो सतयुग होता ।

इसीलिए तो कहते ,
यारों चलते रहो सदा ही।

चलने का ही नाम है जीवन,
रुकना है मौत व खाई।

पानी भी वो ही सडृता है ,
जो स्थिर हो जाता।

बहता रहता वो स्वच्छ सदा,
देवों के सर पर चढ़ता।

गतिशील हो तुम भी प्यारे,
सब कुछ पा सकते हो।

नील गगन में मंगल ग्रह पर,
तुम भी जा सकते हो।

साधना शाही वाराणसी

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By Sadhana Shahi

A teacher by profession and a hindi poet by heart! Passionate about teaching and expressing through pen and words.

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