गीता से मिली थी सीख, तबाह करने का दम रखने वाले परमाणु बम बनाने वाले साइंटिस्ट की कहानी -:

हम में से कोई भी वेदों, पुराणों की शक्तियों और उनमें मौजूद महत्वपूर्ण जानकारियों से अभी तक अच्छी तरह से वाकिफ़ नहीं हो पाया है। जब भी कोई इंसान मुसीबत में होता है वह ईश्वर को याद करता है और उसे किसी भी परेशानी से निपटने की शक्ति और मार्ग का ज्ञान होने लगता है। हमारा देश तो हमेशा से ही आध्यात्मिकता से जुड़ा रहा है। हमारे देश में विश्वभर से लोग आध्यात्म की शिक्षा लेने आते रहें हैं।

उन्हीं में से एक है परमाणु बम के जनक जूलियस रॉबर्ट ओपेनहाइमर, जिन्होंने परमाणु बम का परीक्षण करने से पहले भारत में एक साल बिताया था। भारत आने का उनका मकसद भगवत गीता से आध्यात्मिक शिक्षा को ग्रहण करना था जिसके लिये उन्होंने संस्कृत भी सीखी थी। 1933 में जब ओपेनहाइमर बर्कले में थे तब उनकी मुलाकात संस्कृत के प्रोफेसर आर्थर डब्लू. राइडर से हुई। रॉबर्ट आर्थर से इतने प्रभावित हुए थे कि वे उनके छात्र बन गये। इसी दौरान रॉबर्ट ने आर्थर से बार-बार भगवत गीता का ज़िक्र सुना था।रॉबर्ट ओपेनहाइमर मैनहट्टन प्रोजेक्ट की टीम के प्रमुख थें। यह टीम एक ऐसी वस्तु बनाने जा रही थी जो पल भर में दुनिया को तबाह कर सकती थी। इस बात से रोबर्ट अच्छे से परिचित भी थे और दुखी भी। उन्हें इस विनाशकारी वस्तु को परीक्षण के लिये देने से पहले हिम्मत और आंतरिक मजबूती की जरुरत थी। जिसके लिये उन्होंने भगवत गीता का सहारा लिया था।

ओपेनहाइमर ने संस्कृत सीखने के बाद गीता को भी संस्कृत में पढ़ा तथा अर्जुन और कृष्ण के उस संवाद से वे बड़े प्रभावित हुए थे जिसमें अर्जुन कृष्ण से बार-बार सवाल पूछते हैं कि क्यों उन्हें कौरवों के साथ युद्ध शुरू करना चाहिये जबकि वे उनके भाई ही थें। इसके जवाब में कृष्ण उनको तर्क देते हैं कि, अर्जुन तुम एक सिपाही हो और तुम्हें अपना कर्तव्य अच्छे से करना होगा। तुम्हारा भाग्य तय करना मेरा कार्य है, तुम्हारा नहीं, तुम्हारा फ़र्ज़ है कर्म करना। और अंत में तुम्हें मुझ पर भरोसा रखना चाहिए।

जूलियस रॉबर्ट ओपेनहाइमर एक सैद्धांतिक भौतिकविद् थे जिन्हें ‘एटोमिक बॉम्ब का जनक’ भी कहा जाता है। ओपेनहाइमर ने मेक्सिको के ट्रिनिटी टेस्ट केंद्र पर 16 जुलाई 1945 को जब सबसे पहले एटोमिक बॉम्ब का विस्फोट देखा तो उन्होंने कहा ,’मुझे हिन्दू शास्त्र भगवद गीता की वह पंक्ति याद आ रही है जब विष्णु अपना विराट स्वरूप दिखाते हुये अर्जुन को समझा रहे है कि मैं लोकों का नाश करने वाला महाकाल हूँ। और मैं इस समय अधर्म का नाश करने के लिए प्रवृत्त हुआ हूँ।

ओपेनहाइमर का यह कथन हिन्दू धर्म की धार्मिक किताब भगवद गीता के अध्याय 11 श्लोक 32. मैं है : कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः।…॥३२॥

अर्थात मैं लोकों का नाश करने वाला महाकाल हूं। मैं समस्त लोकों को नष्ट करने के लिए प्रवृत्त हुआ हूं।

भौतिकविद ओपेनहाइमर कभी हिन्दू धर्म में परिवर्तित नहीं हुए ना ही खुद को कभी हिन्दू कहा लेकिन भारतीय वैदिक दर्शनशास्त्र ने उन्हे अन्य से ज्यादा प्रभावित किया। ओपेनहाइमर ने गीता को समझने के लिए संस्कृत की अतिरिक्त शिक्षा ली क्योंकि वह गीता को उसी की भाषा में समझना चाहते थे। उनका जन्म भले ही एक यहूदी परिवार में हुआ था लेकिन महान हिंदू महाकाव्य भगवद्-गीता के ज्ञान ने उन्हें अपनी ओर आकर्षित कर लिया। ओपेनहाइमर के अनुसार 19वीं शताब्दी में अगर ऐसा कुछ था जो पश्चिम के देश भारत से सीख सकते थे तो यह गीता का अध्ययन था। भारत के महाकव्य महाभारत में ब्रह्मास्त्र का उल्लेख मिलता है जो परमाणु बम के समान ही माना जाता था। उल्लेखनीय रूप से ओपेनहाइमर भी परमाणु के साथ ब्रह्मास्त्र की संभावना पर विश्वास करते थे।

ओपेनहाइमर का अमर आत्मा के विचार को न स्वीकार पाना उनके मन में कई सवाल खड़े करता था। उन्हें सदैव यही लगता था कि उनके हाथ उन असंख्य लोगों के रक्त से रंगे है, जो उनके द्वारा निर्मित परमाणु बम से मारे गए थे। हालांकि, ये गीता द्वारा प्रेरित ‘कर्तव्य बोध’ ही था जिसने वर्ष 1967 में उनकी मृत्यु तक उनके जीवन का मार्गदर्शन किया था। गीता के कई अर्थ हैं, परंतु गीता का असली सार इसके प्रचलित अर्थ से कहीं ज़्यादा गूढ और रोचक है।

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