गुरु प्रदोष व्रत 28 अप्रैल 2022 गुरुवार को है। यह व्रत देवाधिदेव महादेव को प्रसन्न करने तथा मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए किया जाता है।
1-परिचय
आज वैसाख माह के कृष्ण पक्ष का त्रयोदशी है ।आज के दिन प्रदोष व्रत किया जाता है, यह व्रत प्रत्येक पक्ष की त्रयोदशी को किया जाता है। इस व्रत में सूर्यास्त से पूर्व ही देवाधिदेव महादेव शिव का पूजन कर उनका आशीर्वाद प्राप्त कर लिया जाता है।
2- कितने व्रत रखने चाहिए?
वैसे तो व्रत कितना रखा जाना चाहिए इसका कोई निश्चित संख्या नहीं है। किंतु ऐसी मान्यता है कि 1 वर्ष लगातार इस व्रत को करने से व्रती के सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है , सभी पाप, दोष ,संकट से सदा के लिए मुक्ति मिल जाती है तथा शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
3-किसे व्रत नहीं रखना चाहिए?
जिस प्रकार व्रत के संख्या का कोई निश्चित नियम नहीं है, उसी प्रकार व्रत रखने या न रखने का भी कोई निश्चित विधि नहीं है ।यह स्वेच्छा से किया जाता है, कुछ लोग इसे स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए करते हैं तो कुछ लोग मनवांछित फल की प्राप्ति के लिए करते हैं।
किंतु ज्ञानी लोगों का तथा मेरा व्यक्तिगत तौर पर भी यही मानना है कि गर्भवती, वृद्ध, बच्चे ,रोगी ,अशुद्ध व्यक्ति और यात्री को व्रत नहीं करना चाहिए।
4-कब से व्रत प्रारंभ करना चाहिए?
शास्त्रानुसार प्रदोष व्रत किसी भी माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी से प्रारंभ किया जा सकता है । किंतु, वैसाख माह के पहले त्रयोदशी से प्रदोष व्रत का प्रारंभ किया जाना सर्वाधिक उत्तम माना जाता है।
5-प्रदोष व्रत से जुड़ी कथा
पुराणों के अनुसार एक बार इंद्र और वृत्तासुर की सेना में घमासान युद्ध प्रारंभ हो गया। देवताओं ने वृत्तासुर की सेना को पराजित कर दिया। जिसे बृत्तासुर बर्दाश्त नहीं कर पाया और उसने आसुरी माया से विकराल रूप धारण कर लिया। इसके बाद सभी देवता उसके रूप को देखकर भयभीत हो गए और गुरुदेव बृहस्पति की शरण में पहुंचे।
भगवान बृहस्पति बोले पहले आप लोगों को वृत्तासुर का वास्तविक परिचय जानने की आवश्यकता है। उन्होंने बताया बृत्तासुर पूर्व समय में चित्ररथ नाम का एक राजा था एक बार वह कैलाश पर्वत पर चला गया और वहां उसने शिवजी के वाम अंग में माता पार्वती को विराजमान देख उनका उपहास उड़ाते हुए कहा कि हे प्रभु! मोह माया में फंसे होने के कारण हम स्त्रियों के वशीभूत रहते हैं। लेकिन, देवलोक में ऐसा नहीं दिखा कि स्त्री आलिंगन वध होकर सभा में बैठे।
चित्ररथ की इस तरह की बात को सुनकर माता पार्वती अत्यंत कुपित हो ग गईं और बोली ऐ दुष्ट! तूने देवाधिदेव महादेव के साथ मेरा भी उपहास किया है आज तुझे मैं वो श्राप दूंगी जिससे तू किसी का भी भविष्य में उपहास करने के पहले बार -बार विचार करेगा।
माता पार्वती के श्राप से चित्ररथ राक्षस योनि को प्राप्त हुआ और त्वष्टा नामक ऋषि के श्रेष्ठ तप से उत्पन्न होकर वृत्तासुर बना। वृत्तासुर बाल्यकाल से ही शिव भक्त था गुरु बृहस्पति ने कहा कि हे इंद्र! अगर वृत्रासुर को पराजित करना चाहते हो तो सबसे पहले तुम्हें महादेव को प्रसन्न करना होगा ,और इसके लिए सबसे सरल उपाय है गुरु प्रदोष का व्रत।
यह वह व्रत है जिसके करने से देवाधिदेव महादेव प्रसन्न होते हैं तथा व्रती को हर तरह के कष्टों से मुक्ति मिलती है। और वह शत्रु पर विजय प्राप्त करता है। देवराज इंद्र ने गुरुदेव की आज्ञा का पालन कर गुरु प्रदोष व्रत किया और महादेव के आशीर्वाद से उन्होंने वृत्तासुर पर विजय प्राप्त की और देवलोक में शांति छा गई।
अति पुण्यदाई व्रत प्रदोष का,
त्रयोदशी को होता।
देवाधिदेव हैं पूजे जाते,
मनवांछित फल मिलता।