आज घायल मन को बल मिल गया,
टूटे सपनों को मानो संबल मिल गया।


जीवन बस धुंध व आक्रोश था,
शिथिल पड़ गया सारा जोश था।


क्या करूं कैसे करूं ना होश था,
संग मेरे सिर्फ़ आशुतोष था।


आहत तन ही नहीं मन साथ था,
ना सुख की खुशी ना व्यथा का कोई एहसास था।


सपनों के टूटने से अंतर बदहवास था,
सर पर छत के नाम पर बस नीला आकाश था।


ना किसी के चाह की
अब आस है,
आंसुओं से बुझ रही अब प्यास है।


ना कोई दुख दर्द ना संताप है,
आहत हिया को बस अब पश्चाताप है।

साधना शाही

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By Sadhana Shahi

A teacher by profession and a hindi poet by heart! Passionate about teaching and expressing through pen and words.

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