शक्ति साहस का रूप हैं,
पवन पुत्र हनुमान।
इनका सुमिरन जो करे,
पावे बल- बुद्धि का दान।
ब्रह्मांड पुराण वर्णन करें,
हनुमत भ्राता पांच ,
अग्रज भ्राता रामदूत थे,
चार अनुज यह सांच।
मां अंजना शिव अनन्य भक्त थीं,
शिव को पूजें दिन-रात।
देवाधिदेव प्रसन्न हुए तो,
सुत होने की कह दिए बात।
शिव अवतार कपीस थे जन्में,
लिए रूद्र अवतार।
बारह रुद्रो में श्रेष्ठ थे हनुमत,
चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को पूजे जात।
जनक -नंदिनी थी मांग सजाती,
हनुमत देखे चित लाय।
चुटकी भर से प्रभु हो हर्षित,
मैं लेप लूं पूरे गात।
मारुति रवि को निगल गए तो,
करे त्राहि-त्राहि संसार।
इंद्र क्रोध से लगे कांपने,
वज्र से किये प्रहार।
इंद्र वज्र से हनु धा टूटा,
मारुति कहलाए हनुमान।
चरण -शरण में राखिए,
कपिवर करुणानिधान।
लंका जारी कपिश लगे जलने,
जलधि मध्य गए कूद,
श्वेद जो निकला मीन निगल गई,
उपजे मकरध्वज पूत।
विश्वामित्र का करो न स्वागत,
नारद दिए बताय।
देख धृष्टता रूष्ट हुए कौशिक,
प्रभु दिए मृत्यु की सजा सुनाय।
राम- नाम वायुपुत्र लगे सुमरने,
ब्रह्मास्त्र छोड़े श्री राम।
अस्त्र लौट कर वापस आया,
मत त्यागे करुणानिधान।
राज्यरोहण हुआ प्रभु का,
हिमगिरि पे गए महावीर।
रामायण रच डाले महाबली,
हिमगिरि पर नाखूनों से धर-धीर।
बाल्मिकी जब रचे रामायण,
ले पहुंचे रामदास के पास।
गिरि भीत पर दृष्टि पड़ी तो,
हो गए बड़े उदास।
प्रचेता पुत्र मुख मलीन देख,
कपीश स्व रामायण दिए मिटाय,
चर्षणी सुत ने रचा रामायण,
जग में यही सुहाय।
अति पुनीत हनुमत चरण,
निश -दिन धर लो ध्यान।
निर्बल दीन के सबल सखा ये,
कृपा- सिंधु सुख-धाम।
साधना शाही, वाराणसी
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