अपनी ही जिंदगी पर ,
अपना है बस नहीं।
जीना है औरों के लिए,
जीवन में रस नहीं।
खुद को लुटा दिया,
जिन औरों के लिए।
वो ही हैं आज कहते,
तुमने किया है कुछ नहीं।
कुछ लोग हैं कनखजूरे से,
सदा दर्द देते हैं।
जां भी करो न्योछावर,
ना नर्म होते हैं।
जीवन अगर है जीना,
उनसे दूर हो चलो।
हो लिए बड़े शालीन,
अब मगरुर हो चलो।
यह जीवन ईश का ,
अनमोल नेमत है।
इसे हंसी खुशी से जी लो,
न जाने आए कब मौत है।
साधना शाही, वाराणसी
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