जो बोया सो काटा
जो बोया सो पा गया,
फिर काहे पछताय।
कुश-कांटा जो लगाया था,
तो सेब कहां से आय।
देवघर में घर क्यों जुड़ा है?
इसको पहले जानो।
फिर ऐ मूरख बंदे तुम,
घर की कीमत पहचानो।
घर को भी मंदिर सा समझो,
इसे ना करो नापाक।
देव दनुज सब इसमें रहते,
सारे एक ही साथ।
शेर के जैसे नहीं दहाड़ो,
वर्ना हुंकार करेंगी कस्तूरी।
बनो यदि विष्णु सा पालक,
घर में वास करें चंद्रसाहोदरी।
जिस कलाप की उम्मीद तुम्हें हो,
वही तुम दूजे को भी दो।
करो बुरा और अच्छा पावो,
ऐसा वहम तुरत तज दो।
शूल की खेती करने वाले,
फूल कहां से पाएंगे।
फूल ही जिसने बोया सींचा,
क्यों कंटक चुभ जाएंगे।
साधना शाही वाराणसी