सर्वप्रथम आप सबको ‘ट्रांसजेंडर की दृश्यता का अंतरराष्ट्रीय दिवस’ की बहुत-बहुत शुभकामनाएं। इस दिवस की शुरुआत 2009 में US स्थित ट्रांसजेंडर समाजसेवी रेकेल क्रैंडल ने की थी और 31 मार्च 2009 को सर्वप्रथम इसे ट्रांस लोगों के सम्मान और प्रशंसा के लिएआयोजित किया गया था। आज की मेरी कविता इन्हीं ट्रांस लोगों को समर्पित है जिसे हमारे समाज के कुछ बुद्धिजीवी लोग बड़े ही हीन दृष्टि से देखते हैं। किंतु ऐसा करते समय वे भूल जाते हैं कि इनको भी उसी ईश्वर ने बनाया है जिसने हमें। अतः हमें कोई अधिकार नहीं है कि हम उनकी भावनाओं से खेलें और उन्हें किसी भी प्रकार का कष्ट पहुंचाएं।

हे किन्नर समाज! तुम्हें,
शत-शत नमन हमारा।
हम जैसे ही तो तुम भी पूजते,
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा।

फिर क्यों कोई छक्का कहता,
कोई कहता किन्नर।
कोई कहता हिंजड़ा तुमको
कोई साथ न करता डिनर।

अर्धनारीश्वर पूजे जाते,
तुम क्यों दुत्कारे जाते।
खुशी का अवसर जब है आता,
पहुंच सभी को अघाते।

हल्दी- मेहंदी कुछ ना लगता
नित- दिन तुम करते श्रृंगार।
बाल में गजरा, आंख में कजरा,
और गले में बड़ा सा हार।

हम जैसे तुम भी इश की रचना,
तुमने की कोई खता नहीं।
खुद से खुद को नहीं बनाया,
ईश्वर ने रचा क्यूं पता नहीं।

यहां सब अधिकार तुम्हें भी है,
तन- मन को तुम ना बेचो।
सपने देखो उसे पूर्ण करो,
खुद के लिए रेखा मत खींचो।

साधना शाही वाराणसी

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By Sadhana Shahi

A teacher by profession and a hindi poet by heart! Passionate about teaching and expressing through pen and words.

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