आज हमारा देश आधुनिकीकरण के दौर में बड़े ही तीव्र गति से आगे बढ़ रहा है । हमारे देश में सामाजिक, शैक्षिक ,आर्थिक, धार्मिक ,पारिवारिक प्रत्येक स्तर पर बदलाव आया है। लेकिन ,आज भी कुछ लिंग भेदी समाज में विद्यमान हैं जो बेटी के जन्म लेने पर मातम मनाते हैं ।इतना ही नहीं उस बेटी को जन्म देने वाली मां के ऊपर नाना प्रकार के अत्याचार करते हैं। बेटे के जन्म पर खुशियां जहां खुशियां मनाते हैं वहीं बेटी के जन्म लेने पर मातम। आज भी कुछ घरों में तो बेटी को कोख में ही मार दिया जाता है, क्योंकि ऐसे तुच्छ विचारों के लोग बेटी को एक बोझ समझते हैं। तो आज की मेरी कविता ऐसी ही तुच्छ छ मानसिकता को दर्शा रही है-

देश हमारा बड़ा निराला,
बेटी यहां तो पूजी जाती।
किंतु विडंबना यहां की देखो,
इनका जन्म बड़ा दुख देती।

मां की कोख में मारी जाती,
जन्मे तो दुत्कारी जाती।
जिस मां के यह कोख से जन्मे,
वह क्यों बड़ी प्रताड़ित होती।

बेटा बाहर उधम मचाए,
बेटी घर में कैद हो जाए।
खेलना -कूदना छुप-छुप देखे,
अपनों से क्यों दुख वो पाए।

विद्यालय जब बेटा जाता,
आके दूध मलाई खाता।
बेटी जब विद्यालय जाती ,
आके झाड़ू बर्तन करती।

बेटा जितना चाहे पढ़ ले,
घर की पूंजी सर्वस्व वो धरले।
फिर भी ना कोई करो कोताही ,
वंश बढ़ाता है बेटा ही।

बेटी को ना अधिक पढ़ाओ,
घर के काम-काज सिखलाओ।
इस घर की है यह मेहमान,
हमें है करना कन्यादान।

उच्च शिक्षा को प्राप्त जो कर ले,
वर सुयोग्य फिर कैसे वर लें।
मिले यदि तो वो बड़ा महंगा,
सस्ता मिले तो वो बेढंगा।

जल्दी शादी-ब्याह कर डालो,
ज़िम्मेदारी से मुक्ति पा लो।
जा फिर बेटा ही जन्माना,
बेटी का हिम्मत ना बंधाना।

कोई सपने नहीं संजोना,
प्रात से रात जिम्मेदारी ढोना।
उफ़ करने की करो ना जुर्रत,
बेटी का तो यही है किस्मत।

समानता की बात जो करते,
भेद-भाव से वह ना डरते।
बेटा सर आंखों पर रहता,
बेटी को हैं सदा झिड़कते।

मूढ़ को कोई यह समझाए,
बेटी ही बेटा ले आए।
बिन बेटी तो जग है सूना,
जान लो यह तो सब हर्षाए।

अंत में मैं इस तरह के लैंगिक भेद-भाव करने वालों से विनती करती हूं कि आप अपनी विचारधारा को परिवर्तित करिए अपनी बेटी को भी बेटे जैसा ही प्यार, दुलार व अधिकार दीजिए फिर देखिए किस तरह से अपनी जीत का परचम फहराती है,आप के मान- सम्मान में चार चांद लगाती है

साधना शाही ,वाराणसी

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By Sadhana Shahi

A teacher by profession and a hindi poet by heart! Passionate about teaching and expressing through pen and words.

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