द्रौपदी जिनका जन्म अग्नि के तेज से हुआ है जो पवित्र से भी पवित्र मानी जाती हैं, जिनके भाई दृष्ट धूम बहुत पराक्रमीयोद्धा थे। पांच पांडवों की पत्नी जो महा योद्धा कहे जाते हैं। परंतु इतने पराक्रमी भाई तथा पांच महा योद्धा पांडवों की पत्नी होते हुए भी उनका की चीरहरण हुआ । वो भी उनके सामने, यह बात बहुत कड़वी है पर यह हमारा इतिहास कुछ-कुछ दुष्कर्मी ने इतनी पवित्र द्रौपदी के ऊपर कलंक लगाने की कोशिश की थी।
उस दिन हस्तिनापुर में युधिष्ठिर जुए में अपना सब कुछ हार चुके थे। खेल खत्म हो सकता था, परंतु कर्ण की वह शब्द जो बहुत ही लज्जित कर देने वाले थे ।
कर्ण ने कहा की अभी तुम्हारी पत्नी वह मृगनैनी तथा घमंडी द्रौपदी बाकी है, उसको दाऔ पर लगाओ। नीति वान युधिष्ठिर से यह बर्दाश्त नहीं हुआ और वह धृतराष्ट्र से बोले कि आप की पुत्र वधू का इस तरह से इस सभा में नाम लिया जा रहा है, आप कुछ बोल क्यों नहीं रहे हैं ।
तब?
धृतराष्ट्र ने उस वक्त कुछ नहीं बोला पर उनकी मॉन यह बता दी कि वह ऐसे भी तो अंधे ही है, और पुत्र प्रेम ने उनको और अंधा कर दिया था। और फिर क्या था दुर्योधन ने संकेत दिया द्रौपदी को लाने का तभी उसका छोटा भाई दुशासन द्रौपदी के कक्ष में गया।
द्रोपदी उस वक्त मासीक धर्म से गुजर रही थी। ना कोई श्रृंगार किए हुए सिर्फ एक साड़ी में लिपटी हुई थी। उन्होंने अपनी दशा को देखा और दुशासन से बोला कि मुझे इस वेशभूषा में मत ले कर चलो मैं मैं इस कुरु वंश मर्यादा हू । तब भी दुशासन ने अपनी गंदी नजरों से द्रौपदी की ओर देखा और उनके बाल पकड़कर उन्हें सभा में ले गए।
तभी द्रौपदी ने बोला कि जो जानते होंगे वह तो पहचान लेंगे, कि जो नहीं जानते होंगे उनसे क्या बोलोगे कि तुम कुरु वंश की मर्यादा को घसीटते हुए ले जा रहे हो ,द्रौपदी सिर्फ एक कपड़े में लिपटी हुई पूरी सभा के सामने पहुंची।
तभी पितामह की आंखें झुकते देख। पंचाली ने कहा अपनी आंखें झुकाने से क्या होगा मुझे बताइए कि आपने सिर्फ करूं वंश सिंहासन की रक्षा का दायित्व लिया था कुरु वंश की मर्यादा का कोई भी दायित्व नहीं , मेरी ओर देखिए पितामह मैं कुरु वंश मर्यादा पर लगा हुआ एक प्रश्न चिन्ना हूं।
देखिए कि आपकी कुलवधू को किस दशा में यहां खींचकर लाया गया है। क्या आप कुछ नहीं बोलेंगे आप?
अगर आपने बोल दिया तो मैं चुप हो जाऊंगी बोलिए और मुझ से कहिए कि क्या ऐसे ही होते हैं भारतवंशी द्रौपदी एक बच्चे की तरह अपने पिता महा के सामने रो पड़ी परंतु पितामह का कोई भी जवाब नहीं आया। द्रोपदी ने कहा कि जो व्यक्ति खुद को जुए में हार चुका है उसका क्या हक बनता है कि वह मुझे दाओ पर लगाए?
पितामह ,गुरु द्रोण ,पांडू पुत्र सभा में कुछ भी नहीं कर पाए। वह निर्लज्ज दुर्योधन जोर से चिल्ला पड़ा मेरी इस दासी को कहो मेरी जांग पर आकर बैठो, और दुशासन को आदेश दिया कि द्रौपदी को निर्वस्त्र कर दो।
इस दासी को जिसको मैंने जुए में जीता है वह बिना वस्त्रों के दिखती कैसी हैं?
दुशासन जैसी इसी के लिए रुका बैठा था , द्रौपदी की साड़ी उसने ऐसे खींचनी शुरू की जैसे कि कोई शेर अपना शिकार लेने जा रहा है, भरी सभा में द्रौपदी के अंग से साड़ी खींचने लगा। वह द्रौपदी जिसके अंग को पवन भी नहीं छू सकता था सूर्य का प्रकाश भी नहीं देख सकता था अब पंचाली किससे आस लगाती पंचाली ने नाम लिया, हे कृष्ण मेरी लाज बचाओ।
कृष्ण ने अपनी सखी को निराश नहीं किया। उन्होंने द्रौपदी की साड़ी में जैसे कोई धागा बांध दिया हो दुशासन साड़ी खींचते खींचते परेशान हो गया पर साड़ी का एक तंका तक द्रोपति से अलग नहीं कर पाया।
उस चीरहरण का परिणाम
- महाभारत का युद्ध।
गांधारी सौ पुत्रों के होते हुए भी निसंतान मरी। कुरुक्षेत्र में इतनी सारी चिंताएं जली। जिस का अभाव हमें अभी तक होता है, सब कुछ बर्बाद हो गया। इतिहास गवाह है कि जब जब नारी के सम्मान को ठेस पहुंचाया जाएगा तब तक तबाही होगी।
इसीलिए जो अभी नारी का सम्मान नहीं करते हैं उन्हें करना चाहिए नहीं तो वह बर्बाद हो जाएगा।
Image Reference – https://www.therednews.com/4633-amazing-story-of-draupadi-cheer-haran