क्वार महीना, शुक्ल पक्ष,
तिथि प्रथमा से नवमी ऐ भक्त!!

मां दुर्गा हैं पूजी जातीं,
भक्त हो जाते विरक्त।

उबला चना व पूरी हलवा,
मां के मन को भावे।

पूरा जगत कर जोर के,
अंबे -अंबे गावे।

पश्चिम बंगाल है शक्ति पूजता,
शक्ति रूप हैं माता।

इनकी महिमा जन-जन जाने,
संसार जिसे है जानता।

बंगाल का दुर्गा पूजा भक्तों,
विश्व में है विख्यात।

दिव्य ज्योति देवी की जलाकर,
कन्या – लांगुरिया को जिमात।

बात पुरानी बड़ी ऐ भक्तों !
दुर्गा नाम का राक्षस।

आतंक ऐसा था फैलाया,
जिससे तीनों लोक संतप्त।

जगजननी को सबने पुकारा,
अंबे -अंबे का जयकारा।

भक्तों की सुन करुण पुकार,
भगवान शक्तियां लीं अवतार।

दूर्गा, दुर्गसेनी नाम था उनका,
दुर्गम राक्षस संहार काम था जिनका।

दुर्गम गया तो आ गई शांति,
ब्राह्मण भक्तों की मां रक्षा की।

मां दुर्गा तब नाम पड़ा था,
भक्तों का सम्मान बढ़ा था।

मां महिमा का जग हुआ कायल,
कोई भक्त ना फिर हुआ घायल।

हिंदू शास्त्र हैं वर्णन करते ,
मां दुर्गा के नौ रूपों का।

महाकाली ,महालक्ष्मी, चामुंडा,
योगमाया, शाकुंभरी, रक्तदंतिका।

मां का भरोसा मां का आस,
बस मां पर ही था विश्वास।

मधु- कैटभ, महिषासुर,धूम्राक्ष,
शुंभ- निशुंभ आदि दैत्य साक्षात।

दैत्यों का मां मर्दन कर दीं।
शांत जगत का सर्जन कर दीं।

दुर्गा देवी , भ्रामरी, चंडिका,
दैत्य संहारी बनीं वंदिता।

घोर अनाचार का नाश हुआ था,
एक नया प्रकाश हुआ था।

मां की महिमा के अमृत वर्षा से,
नए युग का आभास हुआ था।

बड़ी ही दीनदयालु मां हैं,
बिन मांगे सब कुछ दे देतीं।

सच्चे मन से इन्हें पुकारो,
खाली झोली हैं भर देतीं।

साधना शाही ,वाराणसी।

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By Sadhana Shahi

A teacher by profession and a hindi poet by heart! Passionate about teaching and expressing through pen and words.

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