तन – मन की शुद्धि के लिए छठ महापर्व के पहले दिन नहाए खाए तथा दूसरे दिन खरना का व्रत किया जाता है। यह पर्व कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी व पंचमी तिथि को मनाया जाता है। आज की मेरी कविता में इन्हीं दोनों दिनों की संक्षिप्त जानकारी दी गई है।
कार्तिक मास ,शुक्ल पक्ष, चउथिया,
छठ के नहाए व खान।
यूपी ,बिहार ,पूर्वी भारत का,
इ परब हउवे जान।
हम करब छठी के बरतिया,
आदित पूजन करब।
छठी मैया पूरन करिह असिया,
आदित भजन करब।
तिरिया त बाड़ी आज हुलासल,
आज नहाए खाए के बा।
जल्दी-जल्दी चली ना बजरिया,
चना दाल, लौकी लाए के बा।
घीउआ में छॅंवकब लउकिया,
दलिया घिउआ बघार।
नया चाउर क भतवा पकईबो ,
खाई सगरो परिवार।
कार्तिक मास अजोर पख क पंचमिया,
छठ क दूसरा ह दिन।
एही दिन तिरिया भूखेली खरना,
छठ होई ना ए बिन।
सखी लोग रखेली निरजल बरतिया ,
भक्ति व भाव से संगी व सथिया।
दिन भर के भूखल सब सखियाॅं,
खीर -पूरी खाली लोग रतिया।
खरना बरतिया से तन- मन शुद्ध होला,
खइले परसदिया ई घर में बरकत होला।
पहिले प्रसाद व्रती लोग खालीं,
अपना के बाद परिवार के जिमालीं।
नया ही चावल, नया ही गुण,
गाई के दूध पड़ेला भरपूर।
गुड़- दूध चावल का खीर बनाके,
साथे में रोटी सूरूज के चढ़ा
के।
शब्दहीन माहौल में व्रती लोग खालीं,
होते ही शोर खाईल तज जालीं।
आज के खीर रसियाव कहाला,
आमा के लकड़ी पर पकावल जाला।
साधना शाही, वाराणसी🙏🙏🙏🙏🙏