पितृपक्ष

पितृपक्ष है पक्ष एक ऐसा,
इसकी महता भारी।

यह 16 दिन समर्पित पितरों को,
चाहे नर हों या नारी।

भाद्र पूर्णिमा से आरंभ यह होता ,
क्वार अमावस जाता।

इस पक्ष में पूज लो पूर्वज,
आत्म शांति हो जाता।

पूर्णिमा को जो बैकुंठ सिधारे,
भादो पूर्णिमा आगाज करो।

जिस तिथि परिजन स्वर्ग सिधारे,
उस तिथि उनका का श्राद्ध करें।

विस्मित हो गया तिथि यदि तो,
आश्विन अमावस्या तर्पण कर लें।

तरह-तरह के स्वादिष्ट व्यंजन,
पूर्वज को अपने अर्पण कर लें।

सभी का तर्पण इस दिन होता ,
सर्वपितृ अमावस्या
कहलाता ।

देवी देवता सम पूर्वज हमारे,
उनको इस दिन पूजा जाता।

अकाल मृत्यु यदि हुई किसी की,
चतुर्दशी तिथि श्राद्ध करो तुम।

मोक्ष की प्राप्ति उसको होगी,
श्रद्धा -भक्ति से यह काज करो तुम।

अति पावन अवसर यह होता,
पित्तृ धरा पर विचरण को आते।

तर्पण से वो तृप्त जो होते,
परिजन को आशीष दे जाते।

पितृ प्रसन्न यदि रहते हैं,
घर में सुख शांति है रहती।

रुष्ट यदि ये हमसे हो गए,
आई खुशी भी है छिन जाती।

पितृ श्राद्ध करिए अष्टमी को,
माता का नवमी को करिए।

छप्पन भोजन काग खिलाकर,
दुख – बाधा अपनी ले हरिए।

पूर्वज प्रसन्न श्राद्ध से होते,
देवी- देवता होते पूर्वज से।

श्राद्ध पक्ष ऐसा इक पक्ष है,
यम जीवों को मुक्त कर देते।

यम से मुक्त हो धरा पर आकर,
परिजन से वो तर्पण लेते।

खुशी-खुशी फिर स्वर्ग को जाते ,
आशीषों से झोली भर देते।।

साधना शाही, वाराणसी

By Sadhana Shahi

A teacher by profession and a hindi poet by heart! Passionate about teaching and expressing through pen and words.

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