पितृ पक्ष वह पक्ष होता है जिसमें पूरे दिन हमारे पूर्वजों को श्रद्धा एवं भक्ति के साथ याद किया जाता है। हिंदू धर्म में इस पक्ष का विशेष महत्व है। यह वह समय होता है जब प्रत्येक हिंदू परिवार बड़े ही श्रद्धा एवं भक्ति के साथ अपने पितरों के मोक्ष हेतु श्राद्ध करते हैं। ऐसा करने के पीछे हमारा उद्देश्य होता है कि हमारे पूर्वजों को आत्मिक शांति मिल सके और हमें उनका आशीर्वाद।

पितृ पक्ष प्रत्येक वर्ष भादो माह के शुक्ल पक्ष के पूर्णिमा से शुरू होकर 15 दिनों तक अनवरत चलता है।

ऐसी किंवदंती है कि इन 15 दिनों हमारे पूर्वज कौवे के रूप में धरती पर आते हैं और हम जो उनके निमित्त श्राद्ध करते हैं उसे ग्रहण कर संतुष्ट होकर और हमें अपने आशीर्वचनों से सिंचित कर 15 दिनों के पश्चात स्वर्ग लोक को चले जाते हैं।

इन दिनों मांँस, मदिरा, लहसुन, प्याज जैसे तामसी भोजन से दूर रहा जाता है अर्थात पूरी तरह सात्विक भोजन ग्रहण किया जाता है तथा कोई भी नया एवं शुभ कार्य नहीं किया जाता है। आज पितृपक्ष के पावन बेला में मेरी कविता पितृपक्ष को समर्पित मेरी कविता का शीर्षक है- पितृपक्ष

पितृपक्ष है पक्ष एक ऐसा,
महता इसकी भारी।
16 दिन समर्पित पितरों को,
चाहे नर हों या नारी।

भाद्र पूर्णिमा से आरंभ यह होता ,
क्वार अमावस जाता।
इस पक्ष में पूज लो पूर्वज,
आत्म शांति हो जाता।

पूर्णिमा जो बैकुंठ सिधारे,
भादो पूर्णिमा आग़ाज़ करें।
जिस तिथि परिजन स्वर्ग सिधारें,
उस तिथि उनका श्राद्ध करें।

विस्मित हो गया तिथि यदि तो,
आश्विन अमावस्या तर्पण कर लें।
तरह-तरह के स्वादिष्ट व्यंजन,
पूर्वज को अपने अर्पण कर लें।

सभी का तर्पण इस दिन होता ,
सर्वपितृ अमावस्या
कहलाता ।
देवों सम पूर्वज हैं हमारे,
उनको इस दिन पूजा जाता।

अकाल मृत्यु यदि हुई किसी की,
चतुर्दशी तिथि श्राद्ध करो तुम।
मोक्ष प्राप्ति की जिसको इच्छा,
श्रद्धा -भक्ति से काज करो तुम।

अति पावन अवसर यह होता,
पित्तृ धरा पर विचरण को आते।
तर्पण से वो तृप्त जो होते,
परिजन को आशीष दे जाते।

पितृ प्रसन्न यदि रहते तो,
घर में सुख-समृद्धि है रहती।
रुष्ट यदि ये हमसे हो गए,
आई खुशियाँ भी हैं छिनतीं।

पितृ श्राद्ध करिए अष्टमी को,
माता का नवमी को करिए।
छप्पन भोजन काग खिलाकर,
दुख- बाधा अपनी ले हरिए।

पूर्वज प्रसन्न श्राद्ध से होते,
देवी- देवता होते पूर्वज से।
श्राद्ध पक्ष ऐसा इक पक्ष है,
यम जीवों को मुक्ति देते।

यम से मुक्त हो धरा पर आकर,
परिजन से वो तर्पण लेते।
खुशी-खुशी फिर स्वर्ग को जाते ,
आशीषों से झोली भर देते।।

साधना शाही, वाराणसी

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By Sadhana Shahi

A teacher by profession and a hindi poet by heart! Passionate about teaching and expressing through pen and words.

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