कैसे कोई कह सकता है,
मेरी बेटी मेरा अभिमान।
कैसे कोई कह सकता है,
मेरा बेटा मेरा गुमान।
दोनों एक मां के दिल के टुकड़े हैं,
दोनों मां के दिल में धड़के हैं।
दोनों में ही बसती है,
हर माता की जान।


एक कलाम तो एक कल्पना,
दोनों घर की शान।
बेटा- बेटी दोनों ही ,
एक मां के अभिमान।

बेटे को यदि मां है कहती ,
तू मेरी आंखों की ज्योति।
बेटी को भी तो मां कहती,
तू ही मेरी हीरा- मोती।
आंख है जीवन में बहुमूल्य,
बेटी भी तो है निर्मोल।
बेटे के नाम जीवन का हर पल,
बेटी बिन जीवन ही बेकल।
बेटा घर में खुशियां लाए,
बेटी बिन ना रौनक छाए।
जिम्मेदारी बेटा निभाए,
मन की बात बेटी पढ़ जाए।
बेटा कुल का दीप कहाए,
बेटी दो कुल को महकाए।
ना बेटा बहुमूल्य कभी है,
ना बेटी है कम।
शिक्षा- दीक्षा दो समान यदि,
दोनों में है कुछ करने का दम।
ना तुम किसी को ऊपर रखो,
ना तुम किसी को कम।
एक बाग के फूल है दोनों,
महकेंगे हरदम।


कौन धरा पर अधिक कीमती,
लग नहीं सकता अनुमान।
बेटा बेटी एक समान,
दोनों ही मां के अभिमान।

बेटे को वारिश कहते हो ,
बेटी भी पारस कहलाए।
बेटा कुल का वंश बढ़ाता,
बेटी कुल की अंश कहाती।
बेटा घर का है संस्कार,
बेटी संस्कृति उसका आधार।
संस्कार सुरक्षित यदि करना है,
संस्कृति की तुम करो गुहार।
बिन संस्कृति संस्कार अनारक्षित,
दोनों ही हैं फल मनोवांछित।
दोनों समाज के अंग अभिन्न,
दोनों बिन समाज है खिन्न।
कदम मिलाकर दोनों चल लो,
विश्व फलक पर दोनों टहलो।
दोनों को हक दो एक समान,
दोनों की प्रगति का रखो ध्यान।
फिर देखो अपने घर आंगन को ,
फैली है कैसी मुस्कान।
प्रगति रथ पर आरूढ़ हैं दोनों,
दोनों घर की पहचान ,
बेटा बेटी एक समान,
दोनों ही मां के अभिमान।

साधना शाही, वाराणसी

Also Read – राहें खुद बनाना सीखो

By Sadhana Shahi

A teacher by profession and a hindi poet by heart! Passionate about teaching and expressing through pen and words.

2 thoughts on “बेटा -बेटी घर की शान”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *