भार्या भी है चाहती,
खुशियों की सौगात।
इसके ही तों वास्ते,
कामकाजी संगिनी की हुई शुरुआत।

घर गृहस्ती को संभाल के
करे नौकरी साथ।
पर पी सम मान सम्मान की,
होगी कब शुरुआत।

कल पुर्जे सी हो गई अर्धांगिनी,
कर्म करे दिन-रात ।
प्राणेश लगाए सैर सपाटा,
तय ड्यूटी के बाद।

घर की लक्ष्मी वह कहलाती,
लक्ष्मी कह वह छली है जाती।
उसके इच्छा का मोल न कोई,
प्रियवर की करे दिन-रात।

आया सी दिन- रात है चलती,
कभी जरा सा उफ़ ना करती।
दफ्तर से जब पति है आता,
वो खिदमत में रहती तैनात।

घर के बाहर वह भी जाती,
चिक -चिक किट- किट सब है सहती,
शाम ढले थक घर जब आए,
होती व्यंग-वाणों की बरसात।

देख विडंबना मन यह पूछे,
किसने है यह रीत बनाई।
भार्या ख्याल करें बल्लभ का,
पर उसका ना कोई करे लिहाज ।

उसके भी जज्बात हैं दिल में,
होता उर्जा का है ह्रास।
उसको जानो उसको परखो,
खुशियां मनाओ दोनों साथ।

एक दूजे का ध्यान जो रखो,
करो ना किसी को कभी नजरअंदाज।
छोटी-छोटी खुशियों को दे अहमियत,
जीवन खुशियों का कर लो सौगात

साधना शाही, वाराणसी

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By Sadhana Shahi

A teacher by profession and a hindi poet by heart! Passionate about teaching and expressing through pen and words.

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