जग में यदि महान बनना है,
लो विदुर नीति को जान। आज भी ये प्रासंगिक हैं,
हर बुद्धिजीवी करता सम्मान।
पहला गुण सद्बुद्धि है,
कर इसका सदुपयोग।
बिन सोचे कोई कार्य न करना,
वरना आएगा पछताने का योग।
दूजा गुण व्यवहार कुशल हो,
सरल, सहज अलंकार।
इस गहने को धारण कर ले,
होगा ना धरती पर भार।
जीवन को तू संयमित कर ले ,
इंद्रियों को रख तू नियंत्रित।
गुरु सम जग में पूजा जाएगा,
भटकों को भी कर देगा गौरवान्वित।
कुबेर ख़ज़ाना ज्ञान को जानो,
हर विपदा का समाधान इसे मानो।
ज्ञानवान सा नृप ना कोई,
अज्ञानी सा रंक ना होई।
शूरवीर और बनो बहादुर,
सब मिलने को होंगे आतुर।
देख के बाधा ना घबराओ,
अब्दुल हमीद सा यश तुम पाओ।
मितभाषी गुण को अपनाकर,
सोच- समझकर तू चर्चा कर।
लोपामुद्रा, नायडू बन जा,
अजर -अमर हो जग में छाकर।
दानवीर यदि बन ना पाया,
जीवन धन्य तू कर ना पाया।
क्षणभंगुर जीवन तू जीया,
जीवन भर बस विष तू पीया।
कृत्घन कभी तू बन ना मानव,
भूला उपकार हुआ तू दानव।
उपकारी को यदि तुम भूले,
अवसरवादी नाम को छू ले।
सार रूप में यह तुम जानो,
धर्म ,दान ,दया ,मानवता,
सत्य ,अहिंसा ,
प्रेम ,सहनशीलता
यदि इन्हें तुम धारण कर लो,
इनके विपरीत न पारण कर लो।
नील गगन में यश छाएगा,
तपस तुम्हारा मिट जाएगा।
जग में मान -सम्मान मिलेगा,
भरत, मनु ,विक्रमादित्य, भोज सम,
हर मानव का मान मिलेगा।
साधना शाही, वाराणसी
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