ज्येष्ठ माह की तिथि एकादशी,
निर्जला एकादशी व्रत जान।
दूजा नाम है भीमा एकादशी,
भूल ना तू यह अज्ञान।
पीतांबर धारण तू करके,
दे तुलसी, पीला फल- फूल चढ़ाय।
श्री हरि को भज अंतर्मन से,
सभी पाप क्षन में मिट जाय।
वेदव्यास ने वदा भीम से,
स्वर्ग शुभ होवे व नर्क निकृष्ट।
नरक द्वार से बचना है तो ,
वर्ष में दो व्रत कर लो आकृष्ट।
भीम के मन में द्वंद लगा मचने,
अति दुष्कर यह कार्य ।
बिना खाए मैं रह नहीं सकता,
दीजो अन्य मार्ग बताय।
मोक्ष लालसा मेरे मन प्रभु,
पर भूख सहन ना होय।
ऐसा व्रत मुझको बदलावें,
वर्ष मेंएक दिन रहना होय।
मिथुन बीज के संक्रांति मध्य,
ग्रीष्म ऋतु और ज्येष्ठ माह।
तिथि एकादशी नाम निर्जला,
अति पुण्यदाई व्रत छाह।
अन्न जल का त्याग तुम करके,
तुलसीदल दो हरि को चढ़ाय।
श्री हरि के पावन चरणों में,
निश -दिन ध्यान धरो चित्त लाय।
चौबीस एकादशी का पुण्य,
तू एक एकादशी में जान।
विप्र दान भूखे को भोजन,
देकर अन्न जल का धर ध्यान।
श्री हरि ने था मुझे बताया,
वह सब तुम्हें बता दिए आज।
निर्जला एकादशी के व्रती को,
छू नहीं सके कभी यमराज।
साधना शाही, वाराणसी
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