मां कात्यायनी को सुमर ले बंदे,
जिंदगी तेरी बन जाएगी।
इन्हें कर ले हिया में धारण,
तेरी दुनिया संवर जाएगी।

नवरात्रि की षष्ठी तिथि को ,
मां कात्यायनी हैं पूजी जाती।
कठिन तपस्या जब कात्यायन ने की,
तब प्रसन्ना हो माता उपजी।

मुन्नी कात्यायन ने प्रथम था पूजा ,
स्कंद पुराण करता है वर्णन।
दंभों का यह मर्दन करती,
कात्यायनी का अर्थ है मानव।

मुनि कात्यायन की कन्या हैं,
ये अमोघ फलदायिनी हैं।
आज्ञा चक्र में स्थित रहे साधक,
सदा करता नमन जग जानी है।

आज्ञा चक्र में स्थित जो रहता,
अर्पण मां को सर्वस्व है करता।
भक्त परिपूर्ण आत्मदान जो करे,
मां कात्यायनी के दर्शन से तरे।

युद्ध की ये देवी ये कहलातीं,
गुरु बृहस्पति को नियंत्रित करतीं।
इनकी भक्ति जो भक्त है करता,
गुरु बृहस्पति के बुरे प्रभाव से ना डरता।

कन्या विवाह में यदि है बाधा,
इनके बंदन से टल जाता।
दांपत्य जीवन जो शुष्क पड़ा है,
इनके पूजन से पावस बन जाता।

यमुना तट का सरस किनारा,
गोपियों ने था मां को पूजा।
मुरलीधर का संग ने छूटे,
हे मा !यह रिश्ता ना टूटे।

मां की महिमा का का परिणाम,
गोपियां आईं कान्हा धाम।
भार्या रूप में वर के कान्हा,
गोपियों का थे किए कल्याण।

साधना शाही, वाराणसी

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By Sadhana Shahi

A teacher by profession and a hindi poet by heart! Passionate about teaching and expressing through pen and words.

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