नवरात्रि का दिन है सुहाना,
मां दुर्गा को इस दिन है बुलाना ।
हिंदुओं की ये देवी प्रमुख हैं।
इन्हें भजते ही भाग जाते दुख हैं।
आदिमाया,भगवती ,जगदंबा,
कुछ भी जप लो न करती विलंबा।
तम व अज्ञानता को ये हैं हरतीं,
झोली सभी की मां हैं भरतीं।
ये हैं रक्षक सदा कल्याणकारी ,
तभी जग इन्हें कहे महतारी।
ये दुष्टों का मर्दन करतीं,
धर्म ,शांति संग मां हैं
विचरतीं।
शशि सी ये हैं शीतल उज्जवल,
ममतामई और हिय अति निर्मल।
देव भी दुख में इन्हें पुकारें,
क्षण में मां करती वारे – न्यारे।
अति प्राचीन बात यह भक्तों,
बलशाली दुर्गम सशक्त हो।
हिरण्याक्ष वंश में उसका अस्तित्व,
अति क्रूर पिशाच व्यक्तित्व।
आकृति उसकी अति भयंकर,
कर्म थे उसके देवप्रलयांकर।
महती क्रूर था अति अत्याचारी,
देवों के हिस्से आ गई लाचारी।
धरा पाताल पर मचा हाहाकार,
त्राहि-त्राहि और चीख-पुकार।
प्रसन्न कर लिया महादेव को,
वश में कर लिया सभी वेद को।
देव सभी हो गए छीणकाय,
उनकी पीड़ा कही न जाय।
देवों को वो किया परास्त,
किया स्वर्ग पर कब्जा हुआ आश्वस्त।
सब देवो ने मां को सुमिरा,
तत्काल मां प्रगटीं देर करीं ना।
देवों ने निज व्यथा सुनाया ,
मां के आगे था गुहार लगाया।
दुर्गम किया देवों पर आघात,
अंबे ने भी किया प्रतिघात।
दुर्गम सेना का की संहार ,
देवों का कर दीं उपकार।
काली, तारा ,श्रीविद्या, भैरवी
आदिशक्तियों का मां की आवाहन,
आवाहन पर सब एक हो गईं,
एक हुईं तो हो गईं सामर्थ्यवान ।
सभी शक्तियां मां में समाईं,
दुर्गम को अधोगति पहुंचाईं।
दुर्गम का संहार हुआ जब,
देव ,मनुज हर्षित हो गए सब।
दुर्गम दानव का वध करी थीं,
इसीलिए दुर्गा देवी नाम गही थीं।
जो नर मां का ध्यान लगाता,
छड़ में कष्टों से मुक्ति पाता।
कोई पराजित कर नहीं सकता,
जो दुर्गा की भक्ति करता।
मां उसके इर्द-गिर्द विचरतीं,
उसकी कवच सदा ही बनतीं।
साधना शाही, वाराणसी