आश्विन मास और कृष्ण पक्ष,
तिथि पंचमी तू जान।
मां रक्तदंतिका को भज ले बंदे,
मिटे सभी अज्ञान।
भक्तों ने है तुझे बुलाया,
वैप्रचिति एक दानवआया।
त्राहि-त्राहि मच गया धरा पर,
जीव मात्र सब था थर्राया।
उद्विग्न होकर इनसे देवता,
लगाए मां दुर्गा को गुहार।
हम सब की रक्षा कर लो मैया,
तुम बिन किसकोकरें पुकार।
देवों की विनती सुन लीं माता,
मानव रूप धरीं विख्याता।
मां दानव मध्य युद्ध हुआ घमासान,
जीत किसी का था न आसान।
दानव मां को चौतरफा घेरे,
मां ने दिया वही प्रतिदान।
मां ने एक हुंकार लगाया,
जिससे फैल गए ये सारे।
चुन -चुन मां ने ग्रास बनाया,
वैप्रचिति वंश गए संहारे।
इनका भक्षण करते- करते,
मसूड़ा मा का सूज गया था।
चहुं संतुष्टि हुई थी पुष्पित,
मां ने ऐसा सूझ-बूझ दिया था।
सूज के वो दिखते थे ऐसे,
अनार का दाना जड़ा हो जैसे।
लाल- लाल दंत मां के दिखते,
रक्तदंतिका नाम पड़ा वैसे।
पूजे जो मां रक्तदंतिका को,
दूर करे हर नकारात्मकता को।
चमेली तेल का दीप इन्हें चलता,
गुग्गुल धूप दिखाया जाता।
पुष्प अनार का मां को चढ़ता,
संग सिंदूर ना मानव तजता।
लाल मेवा का भोग लगाओ,
हो मां हर्षित सुख- समृद्धि पावो।
मां के दर पर शीष नवाओ,
धन-धान्य से पूर्ण हो जाओ।
कुलदेवी हाड़ा चौहान की,
सनथूर कस्बे में शक्तिपीठ है मां की।
भव्य है सजता मंदिर मां का,
भव्य आरती शाम को होती।
नवरात्रि का पावन बेला,
मां दर्शन को लग गया रेला।
नवरात्रि जो भजन कराए,
भवसागर से तर जाए चेला।
कई बार सथूर गांव था उजड़ा,
आबाद है फिर भी कुछ ना बिगड़ा।
मां हाथों से मृत्यु पाके,
असुरों का था दशा गति सुधरा।
साधना शाही वाराणसी
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