*मेरे -मेरे की लूट मची है,*
*डाल रहे यह फूट।*
*फूट का फल ही तो देखो*,
*नर प्रतिदिन हो रहे सूट।*
नमस्कार मित्रों!
आज हम भारतीय न होकर अलग-अलग जाति ,धर्म, मजहब ,भाषा ,प्रांत आदि में बंट गए हैं ,आज हम हमको छोड़कर मैं पर उतर आए हैं। और यह मैं ही हमारे आपसी प्यार और सौहार्द्र को खत्म करता जा रहा है । हमारे बीच फूट पैदा करता जा रहा है ,इस फूट का परिणाम है कि आज हमारा देश आए दिन अनेकानेक प्रकार के दंगों का शिकार हो रहा है।
और-
*हिंद देश के निवासी सभी जन एक हैं*,
*रंग रुप वेश भाषा चाहे अनेक हैं।*
का गीत गाने वाले भारतवासी आज मेरे मोहम्मद ,मेरे अंबेडकर, मेरे कान्हा, मेरे रैदास का गीत गाने लगे हैं। और इस तरह एकता के सूत्र में बंधे हुए भारतवर्ष को अनेकता के खाई में धकेलने लगे हैं।
15 अगस्त 1947 को राजनीतिक पराधीनता की हमारी हथकड़ियां और बेड़ियां जरूर कट गईं ।किंतु अंग्रेजों की दी गई आपसी फूट आज भी विद्यमान है। जिसने आज हमें पूर्णरूपेण निष्क्रिय बनाकर रख दिया है। आज हम अपने अधिकार की तो बात करते हैं किंतु उसके फलस्वरुप हमें जो कर्तव्य करना चाहिए उसकी तिलांजलि दे चुके हैं ।और जब हमें जीवन में किसी भी प्रकार की परेशानियों का सामना करना होता है तब हम उसके लिए सरकार को या अपने भाग्य को जिम्मेदार ठहराते हैं।
आज वक्त की मांग है कि हम जाति -धर्म, मजहब, भाषा, प्रांत आदि के भेद-भाव से ऊपर उठकर अपने सूझ-बूझ के साथ अपनी आंतरिक शक्ति के बल पर एकजुट होकर खड़े हों और हमारे पास जो भी साधन हैं उसे लेकर कुछ कर गुजरने की जज्बे के साथ देश के विकास विकास के लिए कार्य प्रारंभ करें। फिर देखें किस प्रकार सरकार सहयोग करतीहै। यदि हम ऐसा कर सकने में सफल हो सके तो वह दिन दूर नहीं होगा जब हमारा भारत पुनः सोने की चिड़िया कहलायेगा और यहां का बच्चा- बच्चा –
*भिन्न भिन्न है जाति हमारी*,
*भिन्न-भिन्न है भाषा*।
*राष्ट्र हमारा समुन्नत हो,*
*सबकी यह अभिलाषा।*
का गीत एक साथ मिलकर गुनगुनाए और लाल, बाल, पाल, विवेकानंद आदि के सपने को साकार करने में महती भूमिका निभाए।
साधना शाही, वाराणसी