मेष संक्रांति की महिमा भारी,
विज्ञान भी इसको माने।
मेष से मीन में चले दिवाकर,
मेष संक्रांति सब जाने।
सरिता में स्नान करे नर,
अन्न धातु का दान करे।
रवि को पूजे लाल वस्तु से,
कभी न विपदा आन पड़े।
बंगाली नववर्ष मनाते,
मधुसूदन हैं पूजे जाते।
पितरों का तर्पण कर मानव,
पुण्य लाभ हैं अनंत कमाते।
सत्तू, शक्कर, गुड़ भास्कर को चढ़ता ,
तदुपरांत हम खाते।
फल अनाज नया घर में आता,
कृषक के मन हर्षाते।
खरमास का हुआ समापन,
मंगल कार्य आरंभ हुआ ।
ब्याह ,नामकरण, गृह प्रवेश का,
जन-जन में शुभारंभ हुआ।
उत्तराखंड में मने बिखोती ,
पाहन को दैत्य हैं माने।
लट्ठ से उसको इतना पीटे,
दानवता ना आए अनजाने।
अन्न ,वस्त्र का दान जो करता,
यश -वैभव को पाता।
मरणोपरांत वो पुण्यात्मा,
यमलोक ना जाता।
हरी घास गौ – माता खाती,
होता अनंत पुण्यदायक।
ग्रह बाधा सब दूर हो जाते,
नित्य कर्म करे शुभदायक।
साधना शाही, वाराणसी