याद और साथ
तेरा साथ ही बस जीने का सहारा है,
सिवा इसके न कोई भी हमारा है।
तेरी यादें मयंक जैसी शीतल है,
ये सोना चांदी हैं ना समझो इन्हें पीतल हैं।
हीरे -मोती सी ये बेशकीमती हैं,
दिन -रात इन्हें उधेड़-बुन और सीलती हैं।
कभी सूर्य का प्रकाश यह फैलाती हैं,
कभी रात में पूरी रात ये रुलाती हैं।
कभी मंद- व सुगंध सभी इनमें हैं,
नहीं बेला, गुलाब ,जूही जिनमें हैं।
ये पूनम की रात सी सुहानी हैं,
यह बसंती बयार सी मनमानी हैं।
ऋतुराज सा आनंद इनसे मिलता है,
जीवन में मधु मानो घुलता है।
इन्हें खोने के डर से रूह काॅंप जाती है,
मानो खुशियों को सारे ढाप जाती है।
साधना शाही, वाराणसी