ये लमहे
आज लमहे जो साथ बिताए,
अब वो कल बन जाएंगे।
यादों के खजाने में,
सिमट करके रह जाएंगे।
खजाने से जब निकलेंगे,
मन बेकरार हो जाएगा।
तन साथ में होगा,
मन समुद्र के पार हो जाएगा।
जूही सी खुशबू ,
ये ले करके आएंगे।
झाड़- झंखाड़ को रौंद ,
चहुॅं केसर फैलाएंगे।
मन जब भी द्रवित होगा,
इन पन्नों को पढ़ लूंगी।
बिखरी हुई यादों से,
पूरी तस्वीर गढ़ लूंगी।
मोम के मानिंद,
जब ये कभी पिघलेंगे।
पिघले मोम को समेटकर,
फिर से उसे गढ़ लेंगे।
जब ये कभी रेत सा,
मुट्ठी से फिसल जाएंगे।
बंद कर तिजोरी में,
सुरक्षित रख पाएंगे।
ये लमहे हैं आम नहीं,
सदा ही याद आएंगे।
प्यार के इन लम्हों को,
हृत्तल में बंद कर जाएंगे।
साधना शाही, वाराणसी