दादुर पुकार करे नाचे झूमे मोर मनवा ,
हो आषाढ़ महीनवां
कृषक के मन करे जोर
हो आषाढ़ महीनवां।
गर्मी के लू थमे धरती जुड़ाए
शीतल बयार सभी के मन भाए
हरियाली फइले लागे घरवां अंगनवां
हो आषाढ़ महीनवां
कृषक के मन करे जोर
हो आषाढ़ महीनवां।
रिमझिम फुहार पड़े दामिनी जो दमके
घटा जब घेर लेवे पड़े छम- छम के
प्रकृति मुस्काए लागे, झूम- झूम गावे लागे
धरती का प्यास बूझे भींगे घर अंगनवा
हो आषाढ़ महीनवां
कृषक क मन करे जोर
हो आषाढ़ महीनवां।
कवि कलाकार हुलसे हुलसे अन्नदाता
तरु पल्लव झूमे अइसे जइसे दूनों भ्राता
चतुर्मास शुरू होवे ,होवे धान
रोपनियां
हो आषाढ़ महीनवां
कृषक क मन करे शोर हो
आषाढ़ महीनवां
चेतन अचेतन दोनों के मन हरषे
जेठ के तपिशखींचे
अभिषेक करें मन से
वसुधा क रंग बदले
होला हरियर रंगवा
हो आषाढ़ महीनवां
कृषक क मन करे जोर
हो आषाढ़ महीनवां
साधना शाही ,वाराणसी