जीवन को बदलना है तो,
राहें खुद बनाना सीखो।
बनी बनाई राहों पर,
तो काहिल चलते हैं।

ठोकरें तोड़ती नहीं ,
हमें जीना सिखाती हैं।
जो घर टूट जाता है ,
नया बनकर संवरता है।

जीवन को बदलना है,
तो तपते पत्थरों से सीखो।
कैसे गृष्म व शिशिर में,
तनकर खड़े रहते ।

अमीरों को तो तुम देखो,
धूप से बच के चलते हैं।
गरीबों को जरा देखो,
धूप में तपते रहते हैं।

कुछ लोगों को धूल से,
एलर्जी शीघ्र होती है ।
और कुछ लाल ऐसे हैं,
जो मस्तक से लगाते हैं।

सुख और दुख जीवन के,
दो किनारे हैं।
कभी हम इस किनारे हैं,
कभी हम उस किनारे हैं।

किनारा जो मयस्सर हो ,
कभी उससे न घबराना।
सुख में मुस्कुरा लेना ,
दुख में धैर्य धर लेना।

चलो तुम ठान लो,
फलक के तारे तोड़ लाओगे।
खरा वही सोना होता ,
जो भट्टी में अधिक तपता।

राह में ठोकरें होंगी,
न शर्माना न घबराना।
अपनों की नजर से बस,
कभी गिरने नहीं देना।

यदि कुछ खामियां हैं तुममें,
वक्त रहते बदल डालो।
कहीं ऐसा न हो जाए ,
खामियां तुम्हें बदल डालें।

समय के साथ बदलो तुम,
पर नियत साफ़ तुम रखो।
विश्व मंच पर चमको ,
चरित्र बेदाग तुम रखो।

साधना शाही, वाराणसी

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By Sadhana Shahi

A teacher by profession and a hindi poet by heart! Passionate about teaching and expressing through pen and words.

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