व्यथा शहीद की पत्नी का

मेरे कोख में तेरा बीज पले,
पर तू उसको ना देख सका ।
तू पिता, पति अत्याचारी है,
रोने से ना मुझे रोक सका।

बहुतेरे सपने आंखों में,
जिसे तूने ही तो दिखाया था।
सारे को तूने तोड़ दिया,
यही तेरे मन को भाया था?

तुझसे जिस दिन मिलना था हुआ,
यूं लगा था खुशियां झोली में।
बाहों के घेरे में खुश थी ,
ज्यूं मां बच्चों की तोतली बोली में।

तेरे आने की थी आस लगी,
और मन में एक विश्वास जगी।
इस तीज पर प्रीयतम आएगा,
ले साड़ी ,कंगन, चूड़ी ,बिंदी।

भारत पर खतरा आन पड़ा,
देश हित तू सीना तान खड़ा।
तूने वादा अपना तोड़ दिया,
चूड़ी ,कंगन सब फोड़ दिया।

मंगलसूत्र, पायल और बिछुआ,
सजने से पहले निकल गए।
सजना, संवरना ,चहकना मुस्कुराना,
इस तीज पर सारे भूल गए।

बस याद एक ही बात मुझे,
तिरंगे में लिपटा गात तेरा।
हे ईश! साथ क्यों इतना छोटा था?
क्यों सूनी कर दिया मांग मेरा?

मुन्नी भी अब चलने है लगी,
पापा- पापा कहने है लगी।
पर उसको कैसे बताऊं मैं,
कोई युक्ति नहीं मेरे मन में जगी।

मैं पत्नी हूं एक सैनिक की,
कर्तव्य से मुंह ना मोडूंगी।
बहना ,बेटी ,माता ,बधू हूं,
सिर्फ भार्या से रिश्ता तोड़ूंगी।

आंखें सूनी,अंतर सूना ,
सूना है मेरा जग सारा।
पर देश कभी ना हो सूना,
भारतवासी करो जयकारा।

साधना, शाही वाराणसी

By Sadhana Shahi

A teacher by profession and a hindi poet by heart! Passionate about teaching and expressing through pen and words.

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