कर लो नित्य व्यायाम तुम,
रख लो काया को निरोग।
रोगी काया को मन ना भावे,
समक्ष हो चाहे छप्पन भोग।
भाग-दौड़ से भरी जिंदगी,
शरीर उपेक्षा जो नर करता।
रोग, बुढ़ापा और कष्ट को,
दे न्योता वह रोज़ बुलाता।
दारुण व्याधि और महामारी,
स्वास्थ्य अनदेखा के परिणाम।
मात ,पिता ,भाई और बंधु ,
फिर कोई ना आए काम।
स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन है विराजे,
तन रोगी वहां विपदा साजे।
नर निरोग तो कार्य सुगम हो,
रोगी नर को सब दुर्गम हो।
शामिल कर दिनचर्या में व्यायाम,
सुखी जीवन का यहआयाम।
प्रात भ्रमण नित करने जाओ,
स्वच्छ प्राणवायु तुम पाओ।
सार रूप में इतना जानो,
खुशियों का मंत्र व्यायाम को मानो।
आलस त्याग करो व्यायाम,
वैद्य ना भटके तुम्हारे धाम।
साधना शाही, वाराणसी
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