संतोष सदा तू कर ले मानव!
दुख से कभी ना तू घबरा।
दुख- सुख में परिवर्तित होगा,
जब ईश्वर होंगे कृपालु।
रात के बाद ज्यों दिन है आता,
दुख के बाद सुख आएगा।
तेरे अंतर्तम को वो सुख,
पावस सा शीतलता पहुंचाएगा।
जेठ दुपहरी तपता मानव ,
मेघा प्यास बुझाता है।
दुख का बादल झट छट जाता,
जब सुख का सूरज आता है।
जो धरले संतोष धन
रंक कभी ना होय।
असंतोषी यदि हुआ तो,
जीवन होगा विषलोय।
सकल पदारथ जग में निहित है,
जो चाहे वो वर ले तू।
संतुष्टि की खेती कर ले,
असंतुष्टि को तज दे तू।
अति संग्रह ही दुख का कारण,
रोष- क्षोभ उपजाता है
इस अति को तुम गर्त में डालो,
हर दुख क्षण में हर जाता है।
साधना शाही, वाराणसी
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