सावन झूम के आया गउआं शहरिया में ,
सगरी नगरिया में ना।

छाए घटा घनघोर,
नाचे मोरा मनमोर।
सुने दादुर के पुकार ,
हर बयरिया में।
सगरी नगरिया में ना।

रात अति घनघोर,
जामे जियरा डरे मोर।
बोले कोकिल, सुक, सारिका,
पपीहा, दादुर, झींगुर चहुंओर।
मनवा लागे खाली हमरी संवरिया में ,
सगरी नगरिया में ना।

भावे धानी रंग चुनरिया,
जा में सुनहर किनरिया।
जाके गोटवा लगा द,
ओही सड़िया में।
सगरी नगरिया में ना।

नाही कंता हमरे साथ,
मन बड़ा ही उदास।
मोरा रैन बीते तड़पत बदरिया में,
सगरी नगरिया में ना।

साधना शाही ,वाराणसी

By Sadhana Shahi

A teacher by profession and a hindi poet by heart! Passionate about teaching and expressing through pen and words.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *