सूना
ईटे गारे का घर सूना ,
दिल इश दिया वह भी सुना।
बिन बच्चों के इस मकान में,
घर का हर कोना है सूना।
कल से ही मिठाई रखी है,
घटने का लेती नाम नहीं।
एक दिन था जब वो रखते ही,
टिकने के लिए स्थान नहीं।
राखी खुशियां लेकर आती,
पर अश्क में डूबी रहती है।
उदास उत्सव हम मना रहे,
कोई और ना ऐसी होती है।
क्या भूलें और क्या याद करें,
यह प्रश्न कठिन आसान नहीं।
जीवन का अभिन्न अंग था जो,
अब वो है मेहमान नहीं।
होठों पे हंसी बिखरी रहती,
दिल है गमगीन हुआ रहता।
अश्कों वाले चक्षु पोंछ -पोंछ,
कोशिश खुश रहने का होता।
साधना सही वाराणसी