स्वर्ग- सरीखी भारत माता ,
दी षट -ऋतुओं का उपहार।
मधुमास के आते-आते,
छाए चहुं खुशियों का बाज़ार।

जग में ऐसा देश नहीं,
जहां धरा करे हर- पल ऋंगार।
ग्रीष्म का अंशु तपिश है देता,
तपोभूमि करता निर्माण।

पावस की रिमझिम बूंदों से,
चहुं हरा-भरा मखमल बिछ जाय।
वर्षा रानी बड़ी सयानी,
लुक- छुप मन मानस हर्षाय

शिशिर की शीत है अस्थि कंपाती,
पतझड़ ला वीरानगी रचती।
अंत में जब आता मधुमास,
धरा पर लगता है चार -चांद

अंत में आता है ऋतुराज,
सकल धरा पर करता राज।
ग्रीष्मा की तपिश, पावस की बूंदे,
शिशिर की ठिठुरन का हो निजा़त।

साधना शाही, वाराणसी

By Sadhana Shahi

A teacher by profession and a hindi poet by heart! Passionate about teaching and expressing through pen and words.

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