1-एक वीरवधू का फ़र्ज़

एक वीरवधू का जीवन जीना आसान नहीं होता।उसमें भी जब वह एक नवजात शिशु की मांँ हो। उसे कभी पाषाण की तरह कठोर ,तो कभी मक्खन की तरह मुलायम बनना होता है। उसे उसके आंँसुओं को पीना होता है, उसे ज़िंदगी के जंग को हर रोज लड़ना और जीतना होता है। क्योंकि वह अपने पति से वायदा की होती है कि वह उसके शहीद होने के पर कभी आंँसू बहा कर स्वयं को कमज़ोर नहीं होने देगी, उसके बच्चे को मांँ का ममत्व और पिता का मार्गदर्शन दोनों प्रदान करेगी। क्योंकि, वह एक सामान्य पुरुष की पत्नी नहीं एक सैनिक की पत्नी है। कुछ इन्हीं हाव-भाव से ओत-प्रोत है मेरी आज की कविता-


वीरवधू का फ़र्ज़

मेरे कोख में तेरा बीज पले,
पर तू उसको ना देख सका ।
तू पिता, पति अत्याचारी है,
रोने से ना मुझे रोक सका।

बहुतेरे सपने आंँखों में,
जिसे तूने ही तो दिखाया था।
सारे को तूने तोड़ दिया,
यही तेरे मन को भाया था?

तुझसे जिस दिन मिलना था हुआ,
यूंँ लगा था खुशियांँ झोली में।ऐैॅ
बाहों के घेरे में खुश थी ,
ज्यूंँ मांँ बच्चों की तोतली बोली में।

तेरे आने की थी आस लगी,
और मन में एक विश्वास जगी।
इस तीज पर प्रीयतम आएगा,
ले साड़ी ,कंगन, चूड़ी ,बिंदी।

भारत पर ख़तरा आन पड़ा,
देश हित तू सीना तान खड़ा।
तूने वादा अपना तोड़ दिया,
चूड़ी ,कंगन सब फोड़ दिया।

मंगलसूत्र, पायल और बिछुआ,
सजने से पहले निकल गए।
सजना, संँवरना और चहकना
इस तीज पर सारे भूल गए।

बस याद एक ही बात मुझे,
तिरंगे में लिपटा गात तेरा।
हे ईश! साथ क्यों इतना छोटा था?
क्यों सूनी कर दिया मांँग मेरा?

मुन्नी भी अब चलने है लगी,
पापा- पापा कहने है लगी।
पर उसको कैसे बताऊंँ मैं,
कोई युक्ति नहीं मेरे मन में जगी।

मैं पत्नी हूंँ एक सैनिक की,
कर्तव्य से मुंँह ना मोडूंँगी।
बहना ,बेटी ,माता ,बधू हूंँ,
सिर्फ भार्या से रिश्ता तोड़ूंँगी।

आंँखें सूनी,अंतर सूना ,
सूना है मेरा जग सारा।
पर देश कभी ना हो सूना,
भारतवासी करो जयकारा।

2- एक वीरवधू का फ़र्ज़

एक वीरवधू का जीवन जीना आसान नहीं होता।उसमें भी जब वह एक नवजात शिशु की मांँ हो। उसे कभी पाषाण की तरह कठोर ,तो कभी मक्खन की तरह मुलायम बनना होता है। उसे उसके आंँसुओं को पीना होता है, उसे ज़िंदगी के जंग को हर रोज लड़ना और जीतना होता है। क्योंकि वह अपने पति से वायदा की होती है कि वह उसके शहीद होने के पर कभी आंँसू बहा कर स्वयं को कमज़ोर नहीं होने देगी, उसके बच्चे को मांँ का ममत्व और पिता का मार्गदर्शन दोनों प्रदान करेगी। क्योंकि, वह एक सामान्य पुरुष की पत्नी नहीं एक सैनिक की पत्नी है। कुछ इन्हीं हाव-भाव से ओत-प्रोत है मेरी आज की कविता-


वीरवधू का फ़र्ज़

मेरे कोख में तेरा बीज पले,
पर तू उसको ना देख सका ।
तू पिता, पति अत्याचारी है,
रोने से ना मुझे रोक सका।

बहुतेरे सपने आंँखों में,
जिसे तूने ही तो दिखाया था।
सारे को तूने तोड़ दिया,
यही तेरे मन को भाया था?

तुझसे जिस दिन मिलना था हुआ,
यूंँ लगा था खुशियांँ झोली में।ऐैॅ
बाहों के घेरे में खुश थी ,
ज्यूंँ मांँ बच्चों की तोतली बोली में।

तेरे आने की थी आस लगी,
और मन में एक विश्वास जगी।
इस तीज पर प्रीयतम आएगा,
ले साड़ी ,कंगन, चूड़ी ,बिंदी।

भारत पर ख़तरा आन पड़ा,
देश हित तू सीना तान खड़ा।
तूने वादा अपना तोड़ दिया,
चूड़ी ,कंगन सब फोड़ दिया।

मंगलसूत्र, पायल और बिछुआ,
सजने से पहले निकल गए।
सजना, संँवरना और चहकना
इस तीज पर सारे भूल गए।

बस याद एक ही बात मुझे,
तिरंगे में लिपटा गात तेरा।
हे ईश! साथ क्यों इतना छोटा था?
क्यों सूनी कर दिया मांँग मेरा?

मुन्नी भी अब चलने है लगी,
पापा- पापा कहने है लगी।
पर उसको कैसे बताऊंँ मैं,
कोई युक्ति नहीं मेरे मन में जगी।

मैं पत्नी हूंँ एक सैनिक की,
कर्तव्य से मुंँह ना मोडूंँगी।
बहना ,बेटी ,माता ,बधू हूंँ,
सिर्फ भार्या से रिश्ता तोड़ूंँगी।

आंँखें सूनी,अंतर सूना ,
सूना है मेरा जग सारा।
पर देश कभी ना हो सूना,
भारतवासी करो जयकारा।

3-सैनिक की पत्नी का तीज (कविता)

सैनिक की पत्नी बन पाना,
है आसान कोई काम नहीं।
यह साक्षात देवी रूप है,
औरत कोई आम नहीं ।

कभी यह चंडी,कभी यह दुर्गा,
कभी सरस्वती सी लगती।
कभी मनु और कभी अहिल्या,
बन वीरांगना है सजती।

इसको ना कभी करें उपेक्षित,
यह हमको है खुशियांँ देती।
स्वयं काँट- कूश में रहकर ,
फूल की खेती हम हित करती।

तीज का पर्व बड़ा ही मोहक,
पी के संग है सजनी सजती।
पर सैनिक की पत्नी वह है,
जो तस्वीर के संग बिहँसती।

कभी-कभी तो उठ पूजा से,
फोन से हंँसकर लेती बात।
कभी-कभी ऐसा भी होता,
पी तज जाता उसका साथ।

फौलाद की वह मूर्ति है,
तभी तो वह है टूट न पाती।
अल्पायु में तोड़ के चूड़ी,
आंँखों में ना आंँसू लाती।

यदि गोद में शिशु है उसके,
देश -भक्ति का पाठ पढ़ाती।
सदा देश की रक्षा खा़तिर
पग पीछे ना हटाना सिखाती।

हमसे ना कुछ करे अपेक्षा,
पर हम समझें कर्तव्य हमारा।
उसके चरणों में हों नतमस्तक,
जिसके कारण खुश हर ,घर द्वारा।

सम्मान की वह अधिकारी,
कभी ना उसको करो बिचारी।
उसने है सिंदूर गँवाया,
बेटा खोई है महतारी।

वह है पूजित,वह है वंदित,
वह देवी का रूप है।
बस उसको सम्मान चाहिए,
धन- दौलत की ना भूख है।

4- हरितालिका तीज गीत

रहे ज़िंदगी भर हमनी क साथ पिया जी,
कबो छूटे ना, प्यारा एहसास पिया जी ।

चंदा- चंँदनिया जस संगे-संगे रहीं जा,
कबो दूरी ना करावे एहसास पिया जी।
रहे ज़िंदगी भर हमनी क साथ पिया जी,
कबो छूटे ना प्यारा एहसास पिया जी।

जइसे सूरज के संग में रहेले कीरिनिया ,
तइसे बिहसीं जा हमनी क साथ पिया जी।
रहे ज़िंदगी भर हमनी क साथ पिया जी,
कबो छूटे ना प्यारा एहसास पिया जी।

चांँद हर लेला जइसे सगरो अन्हरिया,
तइसे भोले जी हरें अवसाद पिया जी ।
रहे जिंदगी भर हमनी क साथ पिया जी,
कबो छूटे ना प्यारा एहसास पिया जी।

5- दिन भर भूखल बानी,
तीज क बरतिया।


दिन भर भूखल बानी,
तीज क बरतिया।
संझा के करब
भोला,
तोहरी अरतिया।
संझा की करब भोला,
तोहरी अरतिया।
तोहरी अरतिया भोला,
तोहरी अरतिया ,
संझा के करब भोला,
तोहरि अरतिया ।

पियवा के साथे,
सुखी रखिह संततिया।
बस इहे माँगन मांँगी,
दिन -अऊरी रतिया।
बस इहे माँगन मांँगी,
दिन अऊरी रतिया।

दिन भर भूखल बानी,
तीज क बरतिया ।
संझा के करब भोला,
तोहरी अरतिया।
संझा के करब भोला,
तोहरी अरतिया।
तोहरी अरतिया ,
भोला तोहरी अरतिया।
संझा के करब भोला,
तोहरी अरतिया।

गऊरा से मांँगी हम त,
मांँगे क सेनुरवा।
सेनुरा अचल रहे ,
लिखीं हम पतिया।

दिन भर भुखल बानी,
तीज क बरतिया।
संझा के करब भोला,
तोहरी अरतिया।
तोहरी अरतिया भोला,
तोहरी अरतिया ।
संझा के करब भोला,
तोहरी अरतिया।

6- इस तीज की कविता शहीद की पत्नी के नाम

पत्नी शहीद की (कविता)

अमन चैन से हम हैं सोए,
वे लड़ते तूफ़ान से ।

चिथड़े गात के उड़ जाते हैं,
समझौता ना आन से ।

उनका भी परिवार तरसता,
संग में उनके जीने को ।

हम सब सुख से, चैन से जी लें।
इसलिए, कर लिए छन्नी सीने को।

वर्षगांँठ है बस इक बीता ,
मेहंँदी का रंग ना उतरा ।

जी भर देख ना पाई उसको,
तिरंगे में लिपटा आया टुकड़ा।

दुखों का पर्वत उस पर टूटा,
पर आंँखें थीं ना गीली ।

सेल्यूट किया जब जोश से उसने
अपने आंँसुओं को पी ली।

जीवन आरंभ हुआ ही नहीं,
उससे पहले ही टूट गया।

सौभाग्य उदित होने वाला था,
उससे पहले ही रूठ गया ।

इस तीज तुम आने वाले थे,
साजो- श्रृंगार को साथ लिए।

वादा को तुमने तोड़ दिया,
तुम आए दर्द एहसास लिए।

सिंदूर की डिबिया टूट गई,
मंगलसूत्र भी मुझसे रूठ गया।

आख़िर कब तक इंतज़ार करूँ,
वह सदा के लिए था छूट गया।

मैं तो उसको बड़ी प्यारी थी,
मेरी मुस्कान बड़ी न्यारी थी।

फिर बोल ज़रा तू ऐ पीड़क!
इतनी सी क्यों तैयारी थी?

क्या तुझे याद नहीं आई थी,
जब तू था मुझको छोड़ चला

जब सब चूड़ी कंगन पहनें,
तो मेरी चूड़ी तोड़ चला।

पर मैं भी तेरी पत्नी हूँ,
आंँखों में अश्क न आएंँगे।

भारत मांँ की रक्षा खा़तिर,
हम भी सेना में जाएंँगे।

साधना शाही, वाराणसी

Also Read – विश्व फ़लक पर तू छा जाना

By Sadhana Shahi

A teacher by profession and a hindi poet by heart! Passionate about teaching and expressing through pen and words.

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