जकान्हा
न्माष्टमी प्रतिवर्ष है मनता,
झांँकियाँ भी हैं सजतीं।
संदेशों का ना कर पालन,
ना समझी चहुँ दिखती।
मुरलीधर व्यक्तित्व अनूठा,
अतीत में वो थे आए।
भविष्य को वो कर दिए उज्जवल,
सन्मार्ग दिखलाए।
कान्हा की भक्ति हम करते,
समसामयिक नहीं बन पाए।
मानव समझ से परे आज भी,
जीवन शैली ना उनकी अपनाए।
समाज अभी भी किया न उन्नत,
कान्हा सा जीवन नहीं जिया।
स्वच्छंद जीवन को गहा न इसने,
निश दिन गरल को पिया।
कान्हा का व्यक्तित्व है ऐसा,
थामे धर्म अतल गहराई।
परम ऊँचाई पर है विराजित,
गंभीरता नहीं आई।
झंझावातों को वो झेले,
गहे कभी ना उदासी।
ना कभी हिम्मत को वो हारे,
भटकी कभी न रूआँसी।
कभी वो मुरलीधर कहलाए,
कभी सुदर्शन चक्रधारी।
कितनों का उद्धार कर दिए,
केशव कुंज बिहारी।
जीने का नया दर्शन दे दिए,
मानव का किए उत्थान।
जीने की नई शैली सिखाकर,
बन गए वो सबके भगवान।
जीवन कथा चमत्कार भरी,
पर हिय के है करीब।
ईश्वर से पहले सफल मनुष्य हैं,
नहीं सिखाते हैं वो रकीब।
साधना शाही, वाराणसी