झट हम वैमनस्यता त्यागें,
नवयुग का करलें निर्माण।
पुरश्चरण को सदा गहें हम,
तब होगा सबका कल्याण।

नैतिक,सांस्कृतिक उत्थान तब होगा,
जब विकृतियों को तज देंगे।
सद्भाव की ज्योति जला कर,
उजियारा घर-घर भर देंगे।

प्राणस्वरूप, दुखनाशक प्रभु को,
अंतरात्मा में धारण कर लें।
सन्मार्ग से प्रेरित हो बुद्धि,
इस वर का उच्चारण कर लें।

मन- मस्तिष्क दोनों ही शांत हों,
विरोधी बातें वहांँ न जाएंँ।
पल भर ना उसे टिकने दें हम,
तुरंत ही उसको मार भगाएँ।

पल भर भी यदि वो रह गईं तो,
विद्रोहाग्नि जला रख देगी।
सुख- शांति जो की थी बसेरा,
उनका ना कभी भला करेगी।

परदोष दर्शन हो भी गया तो,
घृणा- द्वेष ना मन में पालें।
प्रतिशोध का बीज ना बोएँ,
सद्भाव जन- जन में डालें।

ग्राहकता सदा गुण की बढ़ाएँ,
अवगुण ना कभी घर करने दें।
सद्गुण सदा पुष्पित- पल्लवित हो,
कलमषता से ना घर भरने दें।

घृणा के बदले घृणा करें ना,
भौतिकता के ना पीछे भागेँ।
आध्यात्मिकता जीवन में उतारें,
प्रभु नाम संग सोएँ- जागें।

कभी किसी का अहित न सोचें,
जनहित पाठ सदा ही पढ़ लें।
बीज जो बोएँ फ़सल उगेगा,
निष्काम भाव के तरू पर चढ़ लें।

क्षमा के आभूषण को सजोएंँ,
अपकर्म पल में बिसराएँ।
करके क्षमा ग्रहण करें गुरुता,
स्मरण कर ना लघुता दिखाएँ।

हानि- लाभ के ऊपर उठकर,
स्वर व्यक्तित्व को आप निखारें।
सुख में ना लापरवाह बनें हम,
दुख में ना हम धैर्य को टारें।

हालात हो ऐबी या हो चोखा,
हर स्थिति में हो सकारात्मक सोच।
परेशानियांँ दूर झट होंगी,
नहीं किसी को लगेगी ख़रोंच।

कोष सदा सद्गुण का रखो,
सद्विचार की कर लो खेती,
कीमत कई गुना वो पाए,
वक्त रहे जिसने भी चेती।

साधना शाही, वाराणसी

Also Read – बारह जुलाई और सादगी दिवस(कविता)

By Sadhana Shahi

A teacher by profession and a hindi poet by heart! Passionate about teaching and expressing through pen and words.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *