1-नवरात्र सप्तमी आई,
यह खुशियांँ लेकर आई।
आज कालरात्रि मैया,
चहुँ किरपा हैं बरसाईं।
छाया जो घना अंँधेरा,
हैं उसको दूर भगाईं।

नवरात्र सप्तमी आई,
यह खुशियांँ लेकर आई।

आज सातवांँ दिन है भक्तों,
मांँ कालरात्रि को पूजो।
रूप इनका मंगलकारी,
कभी संकट से ना जूझो।
संकट जो आने वाला,
माँ संकट हर ले जाईं।

नवरात्र सप्तमी आई,
यह खुशियांँ लेकर आई।

अपने भक्तों पर मैया,
तू कृपा की दृष्टि डार।
पापी जहँ-तहँ हैं विचरें ,
माँ उनका कर संहार।
तेरी नज़र तो ऐ मेरी मैया!
सब पर ही पड़ जाई।

नवरात्र सप्तमी आई,
यह खुशियांँ लेकर आई।

ऋषि- मुनि और भक्त तेरे ,
जब भी विपदा में आए।
अनाथों की नाथ बनी तू,
क्षण में थे सब हर्षाए।
घनघोर अंँधेरे को हरकर,
क्षण में उज्जवलता लाई।

नवरात्र सप्तमी आई,
यह खुशियांँ लेकर आई।

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आज शुभ दिन ओ मेरी मैया,
तुझको पूजें तेरे लाल।
मुंडों की माला तू पहने,
बिखरे तेरे बाल।
दुष्टों का मांँ मर्दन करती,
उनका है काल कहाई।

नवरात्र सप्तमी आई,
यह खुशियांँ लेकर आई।

2-
घने अंधकार सा वर्ण है,
काली रात सा काला ।
दुष्टों का मर्दन माॅं करतीं,
और पहने मुंडों की माला।

चैत्र शुक्ल की सप्तमी तिथि को,
ये हैं पूजी जातीं,
माॅं दुर्गा की सातवीं शक्ति हैं,
दानवी शक्तियाॅं दूर भगातीं।

रूप है इनका अति भयंकर,
शुभ फल देने वाली।
शुभ फल देने के कारण ही
शुभंकरी कहला लीं।

साधक महान सहस्त्र सार में स्थित,
सभी सिद्धियों के द्वार हैं खुलते,
दुष्टों का विनाश है होता,
ग्रह बाधा सब दूर हैं हटते।

माॅं की भक्ति जो कोई करता,
भयमुक्त वो है हो जाता।
दुख -दरिद्र, तमस मिट जाता,
आश का दीपक नित -दिन जलता।

चर -अचर की ये हैं स्वामिनी,
सकल जगत की येआधार।
इनका पराक्रम अलंघनीय है,
करती विश्व का ये उपसंहार।

रूप भयंकर ह्रदय है कोमल,
दानव का यह काल हैं।
रक्तबीज संहार की खातिर,
धरी रूप विकराल हैं।

उर पर विद्युत सी माला चमके,
ब्रह्मांड सरीखे गोल त्रिनेत्र।
स्वाॅंस -प्रसाद से निकले ज्वाला,
काले मेघ से बिखरे केश।

दाएॕँ उठे कर में वरमुद्रा है,
सभी को वर माॅं देती हैं ।
नीचे कर में अभय मुद्रा है,
सबका भय माॅं हर लेती हैं।

बाएॕँ उपर कर में लोहे का काॅंटा,
मधु -कैटभ का नाश हैं कीं,
नीचे कर में खड्ग बिराजे,
माॅं दुष्टों का मर्दन कीं।

रौद्री ,घुमोरना अन्य नाम हैं,
चंडी,दुरू विनाश काम है।
गर्दभ सवारी माॅं हैं करतीं,
नकारात्मकता मर्दन करतीं।

गुड़ का व्यंजन माॅं मन भावे,
इसका भोग लगालो भक्तों।
गुड़ से माॅं अति हर्षित होतीं,
मनवांछित फल पा लो भक्तों।

पूजा- अर्चन इनका करके,
हर पापों से मुक्ति मिलेगी ।
दुश्मन घुटने टेक ही देंगे ,
यश और तेज की वृद्धि होगी।

कण -कण में माॅं तेरा बसेरा,
बारंबार तुझे प्रणाम है।
पापों से तू मुक्ति देती,
तेरा अद्भुत धाम है।

साधना शाही, वाराणसी

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By Sadhana Shahi

A teacher by profession and a hindi poet by heart! Passionate about teaching and expressing through pen and words.

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