मैं ज़िम्मेदार हूँ
सुमन मेरी बड़ी ही अज़ीज़ मित्र थी उसका एक ही बच्चा था वो भी जन्म से ही मानसिक और शारीरिक दोनों ही रूप से विकलांग था। सुमन ने बहुत पैसे ख़र्च किए लेकिन कोई खास सुधार नहीं समझ में आया। अंत में थक- हारकर भगवान के भरोसे बैठ गई, और बस फिजियोथैरेपी कराती रही। तभी किसी ने मद्रास में किसी हॉस्पिटल का नाम सुझाया और कहा, वहांँ लेकर जाइए मैंने वहाॅं से बहुत से बच्चों को ठीक होकर लौटते हुए देखा है। उस सज्जन की बात को सुनकर सुमन को उम्मीद की एक मध्यम सी रोशनी दिखाई दी। तब सुमन और उसके पति दोनों मद्रास के बताए हुए हॉस्पिटल में गए। वहाँ 40 दिन डॉक्टर की देख-रेख में रहने के पश्चात बच्चे की मानसिक स्थिति में सकारात्मक सुधार नज़र आया, फलस्वरूप डॉक्टर ने 6 महीने के पश्चात आने को कहकर उनको डिस्चार्ज कर दिया।
दोनों पति-पत्नी अपने बच्चे के दिमागी हालत में सुधार को देखकर बड़े ही खुश थे, और मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद ज्ञापित कर रहे थे।यद्यपि की शारीरिक विकास में कुछ अधिक परिवर्तन नहीं हुआ था। जिसके लिए डॉक्टर ने छः महीने बाद आने को कहकर उन्हें अस्पताल से छोड़ दिया था ।दोनों पति -पत्नी ए.सी. सेकंड क्लास में यात्रा कर रहे थे। चूँकि पहले से बच्चे की दिमागी हालत ठीक नहीं थी अतः वह जो कुछ भी देख रहा था उसके लिए वह दृश्य , वह वस्तु नया था।अतः वह उन दृश्यों,वस्तुओं आदि को देखकर फूले नहीं समा रहा था ।
वो ट्रेन में बैठे-बैठे बाहर देखकर बोलता पापा वह देखिए कितना सुंदर फूल है! मम्मी वह देखो कितनी बड़ी नदी है, पापा वह देखिए कितनी सारी गाएंँ हैं। इस तरह से उसके लिए हर एक दृश्य एक रोमांचकारी दृश्य था।
पास में बैठे एक दंपत्ति को यह सब देखकर बड़ा ही अटपटा लग रहा था।पहले तो वो बच्चे को घूर- घूरकर देखते रहे किंतु जब उनसे नहीं रहा गया तो आख़िरकार उन्होंने कह ही दिया आपको नहीं लगता आपके बच्चे को किसी मानसिक रोगी को दिखाने की आवश्यकता है। इस तरह तो यह दूसरों का भी जीना दुश्वार किया हुआ है। सुमन और उसके पति ने बड़े ही शालीनतापूर्वक कहा- हम लोग बच्चे को दिखाकर ही अभी आ रहे हैं। वो दरअसल यह बचपन से मानसिक रोगी था, अभी-अभी उसकी स्थिति में सुधार हुआ है, और यह सब दृश्य उसके लिए नई चीज़ है। इसीलिए यह इन सब दृश्यों, वस्तुओं को देखकर इतना उत्साहित हो रहा है। हमें अच्छी तरह से पता है कि इसकी वज़ह से आप लोगों को दिक्कत हो रही है, उसके लिए हम आप से क्षमा चाहते हैं।
इस तरह से सुमन और उसके पति दोनों ने उस दंपति से क्षमा मांँगा। लेकिन सामने बैठे पति- पत्नी बच्चे को अजीबो-ग़रीब नजरों से घूरते रहे। ख़ैर जैसे- तैसे स्टेशन आया और मेरी मित्र, उसके पति और बच्चा तीनों स्टेशन से उतर गए। उनके उतरते ही सामने बैठे पति पत्नी ने सुकून की सांँस ली।
छ: महीने बाद जब सुमन और उसके पति अपने बच्चे को लेकर मद्रास दिखाने जा रहे थे, तभी इत्तेफ़ाकवश पुनः उनकी मुलाकात उसी दंपत्ति से हो गई। लेकिन इस बार सामने बैठे दंपत्ति मेरे मित्र के बच्चे को घूर- घूरकर देखने की वजाय बड़े ही प्यार भरी नज़रों से देख रहे थे। देखते-देखते बीच- बीच में पत्नी की आंँखें डब-डबा जा रही थीं। उनके इस भावुकता को देखकर आख़िरकार सुमन से नहीं रहा गया और सुमन ने उनसे पूछ ही लिया- क्या बात है मैडम? आप क्यों इतनी उदास और दुखी दिखाई दें रही हैं? सुमन के इतना पूछते ही वो फूट-फूट कर रोने लगीं। तब सुमन उनके पास बैठकर उन्हें अपनी बाहों में भर ली और मासूम बच्चे की भाँति चुप कराते हुए पूछी- क्या बात है? यदि आप बताना सही समझें तो अपनी परेशानी मुझे बताइए हो सकता है मैं आपकी कुछ मदद कर सकूंँ।
मेरे मित्र की इस बात को सुनकर वो महिलाऔर भी फूट-फूटकर रोने लगी और रोते हुए बोली पिछली बार जब हम लोग एक साथ यात्रा कर रहे थे तब मैंने आपके बच्चे के विषय में बहुत बुरा भला कहा, शायद ईश्वर को यह रास नहीं आया और मेरे घर जाने के 2 महीने पश्चात मेरा 10 साल का बच्चा खेलते हुए सीढ़ियों से गिर पड़ा, उसके सर में ऐसी चोट आई कि उसकी मानसिक स्थिति खराब हो गई है, उसकी याददाश्त पूरी तरह जा चुकी है।
मुझे ऐसा लगता है कि मैंने आपके बच्चे के बारे में जो बुरा सोचा ईश्वर ने मुझे उसी का सज़ा दिया है। इतना कहने के पश्चात वो सुमन से माफ़ी मांँगते हुए बोली, बहन मैंने बुरा किया इसलिए मेरे साथ भी बुरा हुआ। यदि हो सके तो तुम मुझे माफ़ कर दो यदि तुम मुझे माफ़ कर दोगी तो मेरे दिल का बोझ कुछ हल्का हो जाएगा। मेरी मित्र ने उन्हें दिलासा देते हुए कहा नहीं बहन ऐसा कुछ भी नहीं है, भगवान पर भरोसा रखो वो सब सही करेंगे । किंतु दूसरी महिला सिर्फ़ यही सोच पा रही थी कि मुझे मेरे ही करनी का फल मिला है। मैंने इनके बच्चे के बारे में बुरा सोचा इसीलिए ईश्वर ने मेरे और मेरे बच्चे के बारे में भी बुरा सोच लिया। मेरे बच्चे के साथ बुरा होने के लिए मैं उसकी माँ ख़ुद ज़िम्मेदार हूंँ।
सीख – भगवान द्वारा दिए गए समस्या का कभी भी मज़ाक नहीं उड़ाना चाहिए। हम नहीं जानते कब वही समस्या आकर हमें घेर लेगी।
साधना शाही, वाराणसी
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