1- देख प्रभु मेरी साधना, करती हूंँ दिन- रैन।
यदि किसी दिन ना कर पाऊंँ, आवे ना फिर चैन।।
2- जाति- धर्म को छोड़कर ,बन जाओ तुम मानव।
मानवता यदि गह ना सके तो, तुमसे अच्छा दानव।।
3- रोजा वरती भले न रखो,नेम ,धरम को रखो।
कर्मकांड को भूलो मानव, भगवत भक्ति को चखो।।
4- जाति धर्म की रूढ़ियाँ, प्रभु घर में न समाय।
इसके संग जो जाना चाहे, चले न कोई उपाय।।
5- अंतर्मन यदि पावन है तो, प्रभु हिय बीच हैं रहते।
कलमष्ता यदि वरण किए तो, प्रभु इसको ना सह सकते।
6- काबा- काशी प्रभु को ढूंँढे़, मिले ना वो किसी ठौर।
अंतर्मन में जब ढूंँढा़ तो, नाच उठा मनमोर।
7- अनंतानंद को पाना चाहो तो, प्रभु की माला जप लो।
कर्मकांड तुम करो न कोई, बस तुम सच्चा तप लो।।
8- प्रेम का मार्ग बड़ा ही सरल है, अनंतानंद तक जाता।
इस पर जो नर है चल लेता, ब्रह्म को है पा जाता।
9- प्रेमदान कर लो ऐ प्रेमी! प्रभु को यदि पाना है।
अंतर्मन को कर लो उज्जवल, प्रभु नेरे यदि जाना है।।
10- मोहपास से कर लो विरक्ति, तज दो हर आसक्ति।
ईश्वर के शरणागत बनकर,पा जाओ तुम मुक्ति।।
साधना शाही, वाराणसी
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