साधना शाही (पद)


मूरख मन तूं क्यों बौराया।
तन मिट्टी का मिलेगा मिट्टी में जो तूने पाया।
सद्कर्मों से किया किनारा, दुर्वृत्ति को अपनाया।
सच पर नहीं भरोसा तुझको, झूठ बात पतियाया।
धर्मग्रंथ का पाठ किया, शतचंडी-पाठ कराया।
खोखले धरम-करम में तूने बिरथा जनम गंवाया।
बांग दिया, घडी़-घंट बजाया,
फिर भी दरश न पाया।
परम तत्व का मरम न जाना,
माया में भरमाया।
सबरी, मीरा जैसी सच्ची भक्ती जो दिखलाया।
भवसागर से पार हुआ,
झट सहज परम पद पाया।

2-
कान्हा से है नेह लगाना।
ठुकराये तो नरकलोक में तुझको होगा जाना।
प्रभु प्रकाश के पुंज पतींगे-सा
बन जा परवाना।
राग-द्वेष से ऊपर उठकर प्रेम-सुधा बरसाना।
मूरख दंभ वही करता जो सीखा बस झुठलाना।
रावण का जब दंभ मिटा तो किसका है रह पाना।
जितनी जिसकी भक्ती उतना प्रभु के यहां ठिकाना।
भक्ती में जो नखसिख डूबा पाया वही खजाना।
3-
कान्हा भक्ति में मैं हूँ खोई, इनके सिवा न दूजा कोई।
मोर मुकुट, मकराकृत कुंडल, वैजयंती माल गले में सोई।
उठते -बैठते,जागते- सोते, कान्हा नाम का सुमिरन होई।
मक्खन- मिश्री भोग लगाऊँ, कान्हा को ना चाहिए छोयी।
यदुनंदन की महिमा गाना, दुष्कर कार्य, कर सकत न कोई।

साधना शाही, वाराणसी

Also Read – Endangered status of Indian Vultures

By Sadhana Shahi

A teacher by profession and a hindi poet by heart! Passionate about teaching and expressing through pen and words.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *