सैनिक की पत्नी का तीज

सैनिक की पत्नी बन पाना,
है आसान कोई काम नहीं।
यह साक्षात देवी रूप है,
औरत कोई आम नहीं ।

कभी यह चंडी,कभी यह दुर्गा,
कभी सरस्वती सी लगती।
कभी मनु और कभी अहिल्या,
बन वीरांगना बन सजती।

इसको ना कभी करें उपेक्षित,
यह हमको है खुशियांँ देती।
स्वयं काँट- कूश में रहकर ,
फूल की खेती हम हित करती।

तीज का पर्व बड़ा ही मोहक,
पी के संग है सजनी सजती।
पर सैनिक की पत्नी वह है,
जो तस्वीर के संग भी बिहँसती।

कभी-कभी तो उठ पूजा से,
फोन से हंँसकर लेती बात।
कभी-कभी ऐसा भी होता,
पी तज जाता उसका साथ।

फौलाद की वह मूर्ति है,
तभी तो वह है टूट न पाती।
अल्पायु में तोड़ के चूड़ी,
आंँखों में ना आंँसू लाती।

यदि गोद में शिशु है उसके,
देश -भक्ति का पाठ पढ़ाती।
देश की आन, बान, शान की खा़तिर,
पग पीछे ना हटाना यह सिखलाती।

हमसे ना कर कुछ अपेक्षा,
पर हम समझें कर्तव्य हमारा।
उसके चरणों में हो नतमस्तक,
जिसके कारण खुश हर ,घर द्वारा।

सम्मान की वह अधिकारी,
कभी ना उसको करो बिचारी।
उसने है सिंदूर गँवाया,
बेटा खोया है महतारी।

साधना शाही, वाराणसी

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By Sadhana Shahi

A teacher by profession and a hindi poet by heart! Passionate about teaching and expressing through pen and words.

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