वर्ष 1973 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने असंतुलित पर्यावरण के दुष्परिणामों से जूझ रही दुनिया को इससे निजात दिलाने हेतु तथा पर्यावरण को हरा- भरा बनाने हेतु लोगों को जागरुक करने के लिए ‘विश्‍व पर्यावरण दिवस’ मनाने की शुरुआत की थी। तब से प्रतिवर्ष एक नई थीम और नए जोश के साथ 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस पूरी दुनिया में एक साथ हर्षोल्लास के साथ मनाकर जनमानस को पर्यावरण के प्रति सचेत किया जाता है।

विश्व पर्यावरण दिवस 2023 का थीम है ‘प्लास्टिक प्रदूषण का समाधान’।
दुनिया भर में प्रति वर्ष 400 मिलियन टन से अधिक सिंगल यूज प्लास्टिक का उत्पादन होता है, जिसमें से केवल 10 प्रतिशत से भी कम का पुनर्नवीनीकरण किया जाता है। फेंके गए या जलाए गए एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक मानव के साथ-साथ सभी जीवित प्राणियों के स्वास्थ्य और जैव विविधता को नुकसान पहुँचाते हैं और पारिस्थितिकी तंत्र को प्रदूषित करते हैं। विश्व पर्यावरण दिवस 2023 प्लास्टिक प्रदूषण के समाधान की तलाश कर प्लास्टिक प्रदूषण के दुष्प्रभावों से निजात पाने हेतु सरकारों, कंपनियों और अन्य हितधारकों के कार्यों को बढ़ाकर बढ़ते प्लास्टिक प्रदूषण संकट को हल करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालेगा।
वैसे तो पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त करने में सभी वृक्षों की अहम भूमिका होती है किंतु आज विश्व पर्यावरण दिवस के शुभ अवसर पर मैं कल्पवृक्ष/देववृक्ष की संज्ञासे नवाजे गए परिजात वृक्ष की चर्चा करूॅंगी।

परिजात(कल्पवृक्ष,
शेफाली,देववृक्ष हरसिंगार, शिउली) वृक्ष

वैसे तो सभी वृक्षों, पौधों का अपना अलग महत्व है। किंतु, इन पौधों में परिजात का पौधा एक ऐसा पौधा है, जो मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम को अत्यंत प्रिय था। तथा जिसे हिंदू धर्म में बेहद पवित्र माना जाता है। इसकी पवित्रता को देखते हुए ही अयोध्या में श्री राम मंदिर के शिलान्यास के उपरांत माननीय प्रधानमंत्री जी धरती को हरा- भरा व समृद्धिशाली बनाने की श्रृंखला में वृक्षारोपण का रस्म निभाते हुए परिजात वृक्ष लगाए। इस वृक्ष पर लगने वाले सफ़ेद और पीले फूल तथा उसकी महक का हिंदू धर्म ग्रंथों में अत्यधिक महत्त्व है। आज विश्व पर्यावरण दिवस के शुभ अवसर पर हम यह जानेंगे कि आखिर ऐसी कौन सी विशेषता है जो परिजात (हरसिंगार, शेफाली,शिउली) के वृक्ष को इतना महत्वपूर्ण बनाती है।

परिजात/ हरसिंगार के वृक्ष से जुड़ी पौराणिक कथा

1-पारिजात के वृक्ष का भगवान इंद्र को मिलना

जैसा की सर्वविदित है समुद्र मंथन के समय समुद्र से अनेकानेक वस्तुएं बाहर आई थीं। वस्तुओं के साथ ही साथ अनेकानेक वृक्ष भी बाहर आ रहे थे उन्हीं वृक्षों में से एक था परिजात का वृक्ष। इस वृक्ष के खूबसूरत फूलों तथा मनमोहक ख़ुशबू को देखकर देव और दनुज दोनों में इसे पाने की प्रतिस्पर्धा सी लग गई। अंततः यह अति महत्वपूर्ण एवं मनमोहक वृक्ष भगवान इंद्र को मिला। भगवान इंद्र इस वृक्ष को लेकर इंद्रपुरी अपने उद्यान में लगवा दिए।

2-अर्जुन द्वारा परिजात को धरती पर लाना-

विद्वानों के मुताबिक महाभारत काल में पाण्डवों के अज्ञातवास के दौरान माता कुन्ती से भगवान शिव ने स्वर्ण के सामान दिखने वाले पुष्प अर्पित करने को कहा था। माता कुन्ती ने भगवान शिव की इस इच्छा को इन्द्र पुत्र अर्जुन से बताया( पांच पांडव में अर्जुन पुत्र वैसे तो पांडु के पुत्र थे किंतु उनका जन्म इन्द्र की कृपा से हुआ था अतः उन्हें इंद्र पुत्र भी कहा जाता है।) और फिर अर्जुन ने भगवान कृष्ण के परामर्श से इन्द्र लोक जाकर इसे पृथ्वी पर रोपित किया। इसके पुष्पों को जब माता कुन्ती ने शिव को समर्पित किया तो प्रसन्न होकर भगवान शिव ने महाभारत युद्ध में विजय का आशीर्वाद दिया। जिस आशीर्वाद के फलस्वरूप पांडवों की महाभारत युद्ध में विजय हुई।

3-कृष्ण द्वारा पारिजात के वृक्ष को अपने उद्यान में लगाना

कुछ पौराणिक कथाओं के अनुसार यह भी कहा जाता है कि परिजात का वृक्ष कुंती की राख से उत्पन्न हुआ था तो कहीं-कहीं यह भी कहा जाता है कि लीला पुरुषोत्तम श्री कृष्ण इस पौधे की एक डाली को चोरी करके अपने उद्यान में लगा लिए थे।
इस चोरी के पीछे जो कारण बताया जाता है वह निम्न प्रकार है-
एक बार महर्षि नारद ने परिजात के पुष्पों की माला श्री कृष्ण को दिया जिसे श्री कृष्ण ने अपने निकट बैठी अपनी पत्नी रुक्मिणी को दे दिया।
(आपने बचपन में अपने बड़े- बुजुर्गों के मुॅंह से सुना होगा इधर का झगड़ा उधर लगाना नारद मेरा नाम है यही मेरा काम है।) ऐसा इसीलिए कहा जाता है क्योंकि वास्तव में महर्षि नारद ऐसा काम करते थे।

महर्षि नारद ने देखा कि श्रीकृष्ण ने परिजात के सभी पुष्पों को रुक्मिणी को दे दिया तब वे सत्यभामा के पास गए। और उनसे कहा श्रीकृष्ण को मैंने अत्यंत मनमोहक परिजात के पुष्प दिए और उन्होंने सारे
पुष्प रुक्मिणी को दे दिए आपके लिए उन्होंने थोड़ा भी नहीं रखा।

पति- पत्नी में इधर झगड़ा लगाने के पश्चात नारद मुनि इंद्रलोक गए और वहाॅं जाकर उन्होंने इन्द्र को चेतावनी दे डाली कि धरती लोक से कोई व्यक्ति परिजात के वृक्षों को लेने आ रहा है किंतु यह वृक्ष स्वर्गलोक की अमानत है इसे किसी भी क़ीमत पर धरती पर नहीं पहुंचना चाहिए ।अतः देवराज इंद्र आप सतर्क हो जाइए यह परिजात का वृक्ष कभी भी आपके उद्यान से गायब हो सकता है।

नारद मुनि देवराज इंद्र को पारिजात के वृक्ष को सुरक्षित करने की बात बता ही रहे थे कि श्री कृष्ण पत्नी सत्यभामा सहित इंद्रलोक पहुॅंचे और उन्होंने भगवान इंद्र से परिजात के वृक्ष की माॅंग की, जिसे भगवान इंद्र ने देने से इनकार कर दिया, जिसके फलस्वरूप भगवान कृष्ण और भगवान इंद्र में युद्ध हुआ। जब इंद्र ने देखा कि उनका पलड़ा कृष्ण के आगे हल्का पड़ रहा है तब उन्होंने परिजात के वृक्ष को श्राप दे दिया कि यह वृक्ष कभी भी दिन में पुष्प नहीं देगा और इसके साथ ही कभी भी इस वृक्ष पर फल नहीं लगेगा। इंद्र के श्राप के कारण ही परिजात का पुष्प सदैव रात में खिलता है और इस वृक्ष पर कभी भी फल नहीं लगता है।

सत्यभामा की जिद्द की वज़ह से श्री कृष्ण परिजात के वृक्ष को स्वर्ग लोक से लाकर सत्यभामा की वाटिका में लगा तो दिए किंतु, उन्हें सबक सिखाने और उनके ईर्ष्यालु स्वभाव को दूर करने हेतु उन्होंने कुछ ऐसा किया कि परिजात का वृक्ष था तो सत्यभामा की वाटिका में किंतु उसका पुष्प रुक्मिणी के उद्यान में जाकर गिरता था। अतः सत्यभामा को परिजात का पुष्प कभी भी नसीब नहीं होता था। यही कारण है कि आज भी हरसिंगार अर्थात् परिजात का पुष्प रात में खिलता है और वृक्ष से दूर जाकर गिरता है।

4-परिजात वृक्ष का महत्व


1- यदि हम हरिवंश पुराण की मानें तो परिजात के वृक्ष को कल्पवृक्ष/देववृक्ष की संज्ञा दी गई है। ऐसा कहा जाता है कि यदि नया जोड़ा पारिजात के वृक्ष से पूजा, अर्चना करते हैं तो उन दोनों के मध्य जीवन पर्यंत प्रेम बना रहता है और वैवाहिक जीवन सुखद रहता है। एकमात्र परिजात का पुष्प ही ऐसा पुष्प है जिसे ज़मीन से उठाकर ईश्वर को पूरे भक्ति- भाव से चढ़ाया जाता है। चूॅंकि परिजात के पुष्प रात्रि में खिलकर रात्रि को मनमोहक व सुगंधित कर देते हैं इसलिए इसे नाइट जैसमीन भी कहा जाता है।

2- परिजात का पुष्प एक ऐसा पुष्प है जिसकी खुशबू हमारे मन- मस्तिष्क को शांत कर हमारे जीवन को सुखी एवं समृद्धशाली बनाती है।

3-परिजात का पुष्प माता लक्ष्मी को बेहद पसंद है अतः इस पुष्प को चढ़ाकर माता लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करने से माॅं प्रसन्न होती हैं और उनकी कृपा से हमारा घर सुख -समृद्धि एवं खुशियों से भरा रहता है।

4-परिजात एक ऐसा पुष्प है जो रात्रि में खिलता है और सुबह होते ही मुरझा जाता है। यह पुष्प जिसके आंगन में विराजित होता है वहाॅं सदैव सुख- शांति और समृद्धि का निवास होता है।

5-हरिवंश पुराण में यह भी कहा जाता है कि यह एक ऐसा जादुई पुष्प था जिसे छूने मात्र से ही देवलोक की नर्तकी उर्वशी की पूरी थकान मिट जाती थी।

साधना शाही, वाराणसी

By Sadhana Shahi

A teacher by profession and a hindi poet by heart! Passionate about teaching and expressing through pen and words.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *