वह खून जो देश हित बहा नहीं,
मोल नहीं कोई उसका।
जिसमें जीवन न रवानी है,
वह परवश खून बहे जिसका।
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य ,शूद्र नहीं,
हम सिर्फ़ भारतवासी हों।
सबके दिल में हो मंदिर- मस्जिद,
और काबा कैलाशी हो।
हिंदू, मुस्लिम, जैन, सिख नहीं,
सर्वधर्म का भाव जगाएंँगे,
तब जाकर हम हिंदुस्तानी,
सच्चा अमृत महोत्सव मनाएँगे।
आओ हम सब स्वदेश की,
प्रतिभा पलायन रोक दें।
सर्वधर्म को अपनाकर,
हिंदू, मुस्लिम, सिख ,इसाई,
को अग्नि में झोंक दें।
एक सच्चे भारतीय बनकर,
घर-घर में तिरंगा लहराएँ।
गर्व से मस्तक ऊँचा करके,
आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाएँ।
क्योंकि
त्याग, तपस्या तथा बलिदान का,
सूचक है स्वतंत्रता दिवस।
देश की आन, बान, शान है,
स्वतंत्रता दिवस।
सबसे पहले, सदैव पहले,
का मूल मंत्र है स्वतंत्रता दिवस।
विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की,
पहचान है स्वतंत्रता दिवस।
इसीलिए तो
आज़ादी अधिकार सभी,
का जहांँ बोलते सेनानी ।
विश्व शांति के गीत सुनाती,
जहाँ चुनरिया यह धानी ।
मेघ सांँवले बरसाते हैं,
जहांँ अहिंसा का पानी।
अपनी मांँगे पोछ डालतीँ,
जहाँ हंसते-हंसते कल्याणी ।
ऐसी भारत मांँ के बेटे,
मान गंँवाना क्या जाने।
मेरे देश के लाल हठीले,
शीश झुकाना क्या जाने।
साधना शाही, वाराणसी